Saturday, 6 June 2009

सत्य कुछ और है ,,,,,,, (कविता )


इस हरियाली के,,

पीछे का सत्य,,,

कुछ और है ,,,

जीवन के वहाव के विपरीत ,,

जो मद्धिम सा है संगीत ,,

उसका तथ्य ,,

कुछ और है ,,,

निश्चल बादल के नीचे,,,

जो बिजली की कड़क है ,,,

उसका कथ्य,,

कुछ और है,,

पर्वत की चोटी से गिरता झरना,,

झरने के अंतस की धरना ,,

उसका सत्य ,,

कुछ और है,,

इस पवनी का शीतल वहना,,

कानो में धीमा सर सर करना ,,

जीवन के सत से अबगत कराती ,,

उसके कहने का कथ्य ,,

कुछ और है ,,,

जब व्याकुल मन की उठती तरंग ,,

छाता मन में सत का रंग,,,

छिड़ती अंतस में धीमी जंग ,,,

होती मन की हार जीत ,,,

इस अंतर ध्वनि का सत्य ,,

कुछ और है ,,,

जब खिलता मन देख सुख ,,,

इस सुख के पीछे का क्रंदन ,,

जिसमे डूबा है कोई मन ,,

उस दुखिता मन का सत्य ,,

कुछ और है ,,,,,,,

1 comment:

  1. सच में जो दिखाई देता है,वो होता कहाँ है जीवन में..?

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