मै मगरूरियत में डूबी हुयी युवा पीढ़ी,,,,
उसपे आधुनिक फैशन का दबाब सा हूँ,,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
मै अनपढ़ी इबारत हूँ कुरआन की ,,,,,
बरको में बँटी अधलिखी किताब सा हूँ ,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
मै माथे पर पड़ी अधेड़ झुर्रिया ,,,,,
बेबसी में झुकी कमर पर महगाई दबाब हूँ,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
मै चिंघाड़ सी आवाज हूँ मजलूमों की ,,,,,
शोषित होकर भी शोषण का जबाब सा हूँ ,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
हूँ बक्त की तासीर का आशिक.....
बद बक्त भी बक्त के सुझाब सा हूँ ...
सिद्द्तो से सबारी संस्क्रति का वारिस हूँ ,,,,
स्वीकारता नकारता स्वभाव सा हूँ ,,,,,
मै निरन्तर संपुटित होती मनो इच्छा हूँ ,,,,
पूरित होकर भी कुछ अभाव सा हूँ ,,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
मै रिश्तो में गढ़ रही नवीन परिभाषा ,,,,
मैसंक्रीणता हूँ आत्मीयता का अभाव सा हूँ
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
उसपे आधुनिक फैशन का दबाब सा हूँ,,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
मै अनपढ़ी इबारत हूँ कुरआन की ,,,,,
बरको में बँटी अधलिखी किताब सा हूँ ,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
मै माथे पर पड़ी अधेड़ झुर्रिया ,,,,,
बेबसी में झुकी कमर पर महगाई दबाब हूँ,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
मै चिंघाड़ सी आवाज हूँ मजलूमों की ,,,,,
शोषित होकर भी शोषण का जबाब सा हूँ ,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
हूँ बक्त की तासीर का आशिक.....
बद बक्त भी बक्त के सुझाब सा हूँ ...
सिद्द्तो से सबारी संस्क्रति का वारिस हूँ ,,,,
स्वीकारता नकारता स्वभाव सा हूँ ,,,,,
मै निरन्तर संपुटित होती मनो इच्छा हूँ ,,,,
पूरित होकर भी कुछ अभाव सा हूँ ,,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
मै रिश्तो में गढ़ रही नवीन परिभाषा ,,,,
मैसंक्रीणता हूँ आत्मीयता का अभाव सा हूँ
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
waah bahut khoob...
ReplyDeleteशोशित हो कर भी शोशण का जवाब हूँ मै
ReplyDeleteवाकई तुम लाजवाब हो बहुत अच्छी लगी तुम्हारी ये रचना। आशीर्वाद्
बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteअच्छा लगा आपको पढना...
ReplyDeleteअति-सुंदर भाव...
शुभ-कामनाएँ
गीता पंडित
मै चिंघाड़ सी आवाज हूँ मजलूमों की ,,,,,
ReplyDeleteशोषित होकर भी शोषण का जबाब सा हूँ ,,,
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मै सम्भावनाओं का समस्त आकाश हूँ
बहती दरिया के आब सा हूँ
सचमुच मैं लाजवाब सा हूँ
Bahut umda...Aabhar!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
लाख बाधाओं के बावजूद युवा पीढी तो लाजबाब होती ही है .. उसके हाथ में सबकुछ होता है .. बस सोंचने और कर दिखाने का जज्बा होना चाहिए !!
ReplyDeleteबहुत बढि़या!!
ReplyDeleteकभी टूट जाए कोई मंज़िल नही,
ReplyDeleteएकदम एक झूठी ख्वाब सा हूँ,
कहाँ से से बात उठती है,
कि मैं लाजवाब सा हूँ?
प्रवीण जी इसे कहते है भाव जो एक कवि बनाता है..भाई की दुआ है आप अपने मकसद और उद्देश्य में कामयाब हो..बस लिखते रहिए.....
वाह....बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeletevo sahi kehte hai.. :)
ReplyDeleteअच्छा है.
ReplyDeleteप्रवीण जी, बहुत सुन्दर भावों से ओत-प्रोत रचना है. कुछ सोचने को मजबूर कर देती हैं. रचना बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत की गई है.
ReplyDeleteमहावीर शर्मा
मै चिंघाड़ सी आवाज हूँ मजलूमों की ,,,,,
ReplyDeleteशोषित होकर भी शोषण का जबाब सा हूँ ,,,
फिर भी वो कहते है की मै लाजबाब सा हूँ ,,,,
क्या बात है...बहुत खूब बड़े जोश औ खरोश के साथ दी है,युवा पीढ़ी की परिभाषा
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ReplyDeletepraveen ji , aapki ye kavita bahut kuch sochane par mazboor karti hai .. aaj ke insaan ki sahi manosthiti darshaati hui kavita hai .. meri lakh lakh badhai sweekar kijiye ..
ReplyDeleteaapka
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
"लाजबाब"
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