Tuesday, 27 April 2010

अहो अभावता तुझको ... कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,,(, प्रवीण पथिक,

अहो अभावता तुझको ...
कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,,
तू मेरे पहलुओ का उच्चारण ,,,,
तुझको कैसे मै वंदन दूँ ,,,,,,
जग दुनिया जंगम क्या है ,,,,
ये तेरे चितावन से चेता मै ,,,
कनक भवन या श्रमिक कुटीर ,,
ये तेरे दिखावन से चेता मै ,,,,
ओ स्रष्टि विहरणी ,,,,,
ओ स्रष्टि संचालक ,,,,,,
तुम निर्धन की गरिमा हो ,,,,
पर तेरे दामन की निर्मल छाया से ,,,,,
जाने सब क्यूँ घवराते है ....
अंक लगा स्नेह लुटाती ,,,
उनको जो सारा अपना आते खो ,,,
समर्ध सुधा के पनघट से ,,,,,
तू नाता तोड़े बैठी है ,,,,
सम्राज्य जहां है वो उसका है ,,,,,
तू रिश्ता छोड़े बैठी है ,,,,,,
मै सच कहता हूँ जो हूँ ,,,,
बस तेरी द्र्ड़ता के कारण हूँ ,,,,
मै समग्र विचारों का एक पुलंदा ,,,,,
बस तेरी द्रवता के कारण हूँ ,,,,,,
फिर तेरी करुणा से पाए,,,,,
इस क्रन्दन से तुझको मै ,,,,,
कैसे क्रन्दन दूँ ,,,
अहो अभावता तुझको ...
कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,,




10 comments:

  1. are vaah............bahut hi sundar bhavon ko baandha hai..........gazab ke bhav.

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  2. अहो अभावता तुझको ...
    कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,,
    बहुत खूब !!

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  3. जग दुनिया जंगम क्या है ,,,,
    ये तेरे चितावन से चेता मै ,,,
    कनक भवन या श्रमिक कुटीर ,,
    ये तेरे दिखावन से चेता मै ,,,,
    ओ स्रष्टि विहरणी ,,,,,
    ओ स्रष्टि संचालक ,,,,,,
    तुम निर्धन की गरिमा हो ,,,,

    बहुत सुंदर वंदना है
    मानस को जागृत करती हुई।
    आभार प्रवीण जी।

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  4. बेहतरीन!!

    सुन्दर वंदन!!

    बधाई!!

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  5. कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

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  6. अहो अभावता तुझको ...
    कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,
    ह्रदय स्पर्शी

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  7. एक सशक्त रचना....मन के भाव को इस तरह शब्दों में पिरोना आसान नही, बहुत सुंदर प्रस्तुति है शब्द बोलचाल के नही पर भाव बड़े ही गंभीर और सार्थक है..आपको धन्यवाद कहूँगा....

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  8. ह्रदय स्पर्शी :)

    बेहतरीन :)

    बधाई :)

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