मेरा नाम प्रवीण शुक्ल है लिखना मेरी आदत है और मैं अन्तरमन के अनुभव और सामाजिक समस्याओ के बारे में लिखता हूँ मुझे नहीं पता की मैं कैसा लिखता हूँ न ही मैंने कभी किसी अखबार या पत्रिका में इसे छ्पबाने का प्रयाश किया मैं ये सब अपने अंतर्मन की ख़ुशी के लिए लिखता हूँ पर एक दिन मुझे लगा की की मैं जो लिखता हूँ अगर उस पर और लोगो की राय ले ली जाए तो कैसा रहेगा दर अशल येसा विचार मेरे मन तब आया जब मैं देश के बारे में कुछ करने की सोच रहा था देश भक्ति की भावना भी मेरे मन में बहुत प्रबल है और मुझे लगता है की हम अगर लाखो बार जनम ले कर भी देश के लिए अपनी जान निछाबर करे फिर भी हम देश के कर्ज से मुक्त नहीं हो सकते है , तो मैंने सोचा की अगर मेरी कविताओं से मेरे विचारो से लोगी को जरा भी देश भक्ति की प्रेरणा मिले तो मेरा लिखना धन्य हो जाए गा बस इसी विचार केपरिणाम स्वरूप ये ब्लॉग आप के सामने प्रस्तुत हैपढिये और आप को कैसा लगा अपनी राय जरुर बताईये आप मुझे मेल कर सकते है मेरी इ मेल आई डी है PRAVEENSHUKLA455@GMAIL.COM आप मुझे फोन भी कर सकते है आप की प्रति क्रिया से मुझे लिखने का हौसला मिले गा मेरा नंबर है 8527596234धन्यबाद
मैं पंछी इस अनंत जीवन व्योम का ,
समरसता का पुजारी नेह का अनुरागी हूँ .
चाहता नित नवीनता इस स्रस्ति में ,
करता हूँ दर्शन ब्रह्म का नित ब्रह्म में ,
आधियाँ अनगिनत है झेली इन बाजुओ से ,
स्थर है जो विचलित न हो वो आगी हूँ ,
समानता मेरी तू क्या कभी कर सकेगा
व्योम की विशालता क्या कभी हर सकेगा
मत हास कर सत्य का करले तू बोध ,
ब्रह्म जीव एक है इस का मैं भागी हूँ ,,,
चला कोटि कोटि दूरिया इस जीवन की ,
झेली कोटि कोटि शूरिया इस अरी मन की ,
इस कुटिलता से विमुख ब्रह्म के सम्मुख ,
मय में डूबता उछरता नवीन वैरागी
हूँ ,,,
मत स्रस्ति का आधार मुझको मान ले तू
सुक्ष्म बिंदु इस धरा का जान ले
तू ,,,,,,
कितने पुरुष महा पुरुष हो चुके
निज आभा खो चुके जगाने आया वो
त्यागी हूँ ,,,
मान ले मन में जान ले ठान ले मन में
विचलित न होना तुझको इस गगन में
आरी कंटको को बांध निज नैया बना
सोच ले वैभव मय जगत में बागी हू
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