Tuesday, 4 August 2009

जब तू ही ना है फिर तेरी यादे क्यूँ कर आती है ,, (कविता)


आज रच्छाबंधन का पावन पर्व है, और इस पावन पर्व पर बहनों की महत्ता समझ में आती है,बहन वो पावन नदी है स्वयम को तिरोहित कर देती है अपने भाई और उसके हित के लिए बहन दीपक की वह ज्योति है जो स्वम तो जलती है पर दीपक तक अग्नि को नहीं पहुचने देती है , बहन की महत्ता वह व्यक्ति समझ सकता है ,,जिसे बहन का प्यार मिला है , और वह भी जिसे नहीं मिला है ,, परिवर्तन प्रक्रति का नियम है और म्रत्यु परम सत्य इस सत्य ने मुझे भी मेरी बहन के प्यार से दूर किया , पर पुनरावर्ती भी भी प्रक्रति का एक अटल सत्य है, और इस सत्य ने मुझे मेरी खोई बहन मिला दी ,, इस अंतर्जाल की दुनिया में , जहाँ पर रिश्ते केवल मजाक भर है , पर भी मुझे मेरी बहन मिल सकती थी मैंने कभी नहीं सोचा था साधारण जान पहिचान से भाई बनने का जो सुख मैंने अनुभव किया अवर्णीय है , मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की मुझे मेरी खोई हुई बहन मिल गयी है ,,, आज कितने समय के बाद राखी बाधूंगा मुझे नहीं पता , पर अनुभव कुछ खो कर पाने जैसा होगा , ये कविता मै अपनी इस बहन को समर्पित कर रहा हूँ




बहना तेरी बाते क्यूँ पल पल खूब सताती है .,,
जब तू ही ना है फिर तेरी यादे क्यूँ कर आती है ,,
क्यूँ तेरे हंसने की बोली मुझको खूब रुलाती है ,,
क्यों मेरे माथे की रोली आंसू भर ले आती है,,,
जब भी व्याकुल हो मै गीतों की सांझ सजाता हूँ ,,,
गीतों की धुन में भी बस तेरी यादो को ही पाता हूँ,,,
जब कभी वेदनामय हो दे आवाज बुलाता हूँ ,,,
तू ना आई फिर भी तेरे अहसासों को पाता हूँ ,,,
बहना हर राखी पर राखी तेरी याद दिलाती है ,,,
इस राखी की हर पाखी हर पल तुझे बुलाती है ,,,
बहना तेरी बाते क्यूँ पल पल खूब सताती है .,,
जब तू ही ना है फिर तेरी यादे क्यूँ कर आती है ,,
बहना तुझको आज बुलाते घर ,आँगन चौबारे है,,
दरवाजा ड्योढी चौका छत व्यथित सभी बेचारे है ,,,
मंदिर की ज्योति भी बहना अब टीम-२ कर ही जलती है,,,
मानो तेरी यादो की धुन में, हर पल आहे भरती है,,,
बहना तेरी तस्वीरों को संदूकों में खूब सहेजा है,,,
सब यादो को खूब सहेजा है सब वादों को खूब सहेजा है ,,
जब पवनी से हिलती घंटी,मानो तू इठलाती है ,,,
जब मेघो में छिपती बिजली ,मानो तू शर्माती है,,,
बहना तेरी बाते क्यूँ पल पल , खूब सताती है .,,
जब तू ही ना है फिर तेरी यादे ,क्यूँ कर आती है ,,
बहना बाबू की रोती आँखे तूने ना देखि, पर वो रोते है ,,
तेरी यादो के लम्हों को पल पल वो, आंसूं बन धोते है ,,
जब से तू ना है पुस्तक बेकार पड़ीं है ,कैरम बेकार पड़ा है ,,
माँ की ढोलक भी बेजार पड़ी है ,,बेकार गिटार पड़ा है,,
माँ तो पूजा में भी , अब तेरी यादो में रोती है ,,
उसकी हर पूजा में बस तेरी यादे होती है,,
हर दिन माँ तेरी सारी चीजे, ला मुझे दिखाती है ,,,
कहती है तू आने को है ,, मुझसे सब सम्भलाती है,,,
बहना तेरी बाते क्यूँ पल पल , खूब सताती है .,,
जब तू ही ना है फिर तेरी यादे ,क्यूँ कर आती है ,,

11 comments:

  1. बहुत मार्मिक!

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  2. व्यथा -- दर्द -- भावुकता
    मार्मिक रचना
    माँ तो पूजा में भी, अब तेरी यादो में रोती है ,,
    उसकी हर पूजा में बस तेरी यादे होती है,,
    भाई बहन का प्यार इतनी शिद्द्त से वही बयान कर सकता है जिसने इस अनमोल प्यार को खोया है.
    उस बहन को मेरा प्रणाम

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  3. पावन विचार। दिल को छूने वाली, सिहराने वाली अभिव्‍यक्ति।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति .. आपका दर्द इस कविता के रूप में उभरकर सामने आया है !!

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  5. भावनाओं को संवेदित कर दिया आपने।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  6. लाजवाब रचना, दिल को छु गयी आपकी ये रचना।

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  7. रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
    विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!

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  8. praveen mafi chahati hoon aaj sara din comp nahin chala tumhen rakhi ki bahut bahut badhaai rachana bahut maarmik hai aaj aur kuch nahin keh paaoongi aasheervaad

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  9. मार्मिक रचना!

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  10. praveen ji , bahut maarmik kavita , dil ko choo gayi aur aankhe nam kar gayi ...

    vijay

    pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com

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  11. aap ko bhi raksha bandhan ki bhut bhut badhai

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