Saturday, 8 August 2009

हाय अठन्नी के इतने चेहरे,, ,,{कविता}



पैसा बहुत महत्व पूर्ण चीज है ,, पर उसकी महत्वता व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर है किसी के लिए किसी राशि का होना न होना बराबर है और किसी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि मैं ने गाँव के आम जन के जीवन को बहुत नजदीक से देखा है एक एक पैसा उनके लिए कितना महत्व पूर्ण है ,, इसे मैंने अनुभव किया है ,,,आज भी गाँव मेंकितने कम पैसे में इतनी अधिक चीज मिल जाती है जिसकी हम शहर में कल्पना ही कर सकते है ,,, क्यूँ ही न ये उनकी बिपन्नता के कारण हो इस कविता में मैंने आम जन की या कह सकते हो ग्रामीण आम जन की पैसे की उपयोगता और उपलब्धता को दर्शाया है




एक अठन्नी उछली तो ,,
आकर गिरी हाथ में मेरे
,,,
विस्मित हो मैंने देखा,,
और चौक पड़ा,,,,
हाय अठन्नी
के
इतने चेहरे,,
मै कुछ कहता तब तक ..
वो बोली ,,,,
मै कागज का फुर
फुर पंखा
,,
शक्कर के दो कम्पट हूँ ,,,
मै रोरी की पुड़िया,,,
और गंगा
का
सम्पट हूँ ,,,,
मै धनिये की गाडिया,,,,
अदरक की गांठी
,,,
मिर्चे की तीखी ,,,
फलिया हूँ ....
मै खडिये का डेला
मुल्तानी मिट्टी,,,
पडूये की डलिया हूँ ,,,,
मै पेन की
निव,,,
हूँ पेन की स्याही और चौपतिया हूँ ,,,
मै कपूर का टुकडा
फूलो
की माला और ,,
घी की बत्तिया हूँ ,,,
अब मै विस्मित था
,,,
सुनता जाता था
उसकी बोली ,,,
कुछ कहता इससे पहले ,,,
वो उछली और
उसकी होली ,,,
मै हतप्रभ
था ,,,
अब कुछ नहीं था हाथ में मेरे
बस
सोच रहा था ,,
हाय अठन्नी
के इतने चेहरे
एक अठन्नी उछली तो ,,
आकर गिरी हाथ में मेरे
,,,

7 comments:

  1. बेहतरीन...हाय अठन्नी...बहुत उम्दा ख्याल प्रस्तुत किए.

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  2. मै कागज का फुर
    फुर पंखा
    प्रवीन जी! कितना कुछ कहा है आपने चन्द शब्दो के बेहतरीन तारतम्य मे.
    शायद;
    मै गरीब की चिट्ठी हूँ
    मै मुल्तानी मिट्टी हूँ
    बेहतरीन रचना

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  3. बढिया चिंतन .. बेहतरीन प्रस्‍तुति !!

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  4. बेहतरीन. रचना बधाई।

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  5. कमाल की महिमा बताई है पैसों की आपने.... सच मच अंत में ये हाथों से उचल जाती है ......... लाजवाब लिखा है

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  6. हूँ पेन की स्याही और चौपतिया हूँ ,,,
    मै कपूर का टुकडा
    फूलो
    की माला और ,,
    घी की बत्तिया हूँ ,,,

    उम्दा प्रस्‍तुति
    लाजवाब रचना बधाई।

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