
निरन्तर संकुचित होती ,,
अपनी भावनाओं को सकेंद्रित कर ,,,
परिवर्तन की राह की ओर ताकता हुआ ,,
आत्मनिरिक्षण कर रहा हूँ,,
निज परिक्षण कर रहा हूँ ,,,
कुछ उनीदी सी छा रही है ,,
पर चैतन्य हूँ ,,,
कर रहे है चेष्टा मार्ग अबरुद्ध करने की ,,,
मौन के विशाल बबंडर,,,,
आ रही है एक नयी चुनौती ,,
हर पग पर ,,
गम्भीरता को मैंने ओढ़ रक्खा है ,,
फिर भी विचल हूँ ,,
स्थर होने के प्रयत्न में भी ,,,
चल हूँ ,,,
विपरीत परिस्थितिया ,,
आकास्मिक आघात कर रही है ,,,,
विपन्ता निरन्तर घात कर रही है ,,,
पर निज का खुला पन ,,,
मिलन की राह तैयार कर रहा है ,,,
उस पर तेरा सम्बोधन ,,,
सम्मिलन की राह तैयार कर रहा है ,,,
तभी कुछ हवाओं सी सनसनाहट हुई ,,,
और मै विलुप्त हो गया ,,
अब तू ही है "मै " लुप्त हो गया ,,,
ओ अकिंचन दिव्यद्रष्टा ,,,
मै धन्य हो गया ,,,,,
वाह ! वाह ! वाह ! अभिभूत कर दिया आपकी इस रचना ने.....मैं भी इसे पढ़ धन्यता अनुभूत कर रही हूँ....वाह !! अद्भुत लेखन....
ReplyDeleteभाई वाह प्रवीन जी क्या बात है। आपके इस रचना के लिए तो बस,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, बहुत बढिया,,,,,,,,,,,,,लाजवाब,,,,,,,,,,,,,,,,,बेहतरिन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,शानदार,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteस्थर होने के प्रयत्न में भी ,,,
ReplyDeleteचल हूँ ,,,
अंतर्द्वन्द की मन:स्थिति और कटु यथार्थ.
शायद इसी स्थिरता की चाहत ही तो है जो हमे हमेशा चलायमान रखती है.
बेहतरीन प्रस्तुति
शुक्ल जी!
ReplyDeleteइस भाव-भीनी रचना के लिए बधाई।
Every successful person has a painful story! Every painful story has a successful ending! So accept the pain and get ready for success!
ReplyDeletegod bless you
आपने बेहतरीन शब्दों के प्रयोग से कविता को लाज़वाब बना दिया है..विचारो की दृष्टि से भी देखे तो मुझे इसमे निहित सुंदर भाव बड़े ही प्रिय लगे..आपने एक आत्मविश्वास को जगाने की प्रेरणा का भाव भर दिया,
ReplyDeleteसुंदर भाई..बहुत सुंदर...बहुत बहुत बधाई..
हम भी धन्य हो लिये इतनी अच्छी कविता पढ़कर !
ReplyDeleteधन्यवाद !
वाह ! आपकी सुंदर रचना पढ़कर धन्य हुई
ReplyDeleteधन्य हुए-अद्भुत रचना!! सुन्दरतम भाव!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
bahut sundar post lagi.. apke blog par pahli baar aaya .. achcha laga...........
ReplyDeleteabhiboot ho gayi hoon aapki is rachna ko padh kar
ReplyDeleteek ek shabad moti ki tarah sahej kar likha gaya hai
बहुत सुन्दर मैं लुप्त हो गया तो ही तू है हाँ जिस्के मन मे उसकी सौरभ किरणों का उजाला हो जाये वो धन्य हो ही जाता है फिर तुम तो उसके बहुत बडे भक्त हो बहुत सुन्दर रचना है बधाई
ReplyDeleteBehtareen Abhivyakti vartmaan samaj ke aur hamare din par din aage badhane aur vicharo bhavnao ko kuchalane ki prkriya me..
ReplyDeleteDhanywaad..praveen ji..bahut bahut dhanywaad..