Tuesday, 6 April 2010

म्रत्यु तो नव जीवन का प्रसार

वेद और वेदांत का भाष ...
राग में वैराग का आभास ,
तुम्ही दे सकते हो
व्यथित मन थकित तन को ,
चिर विकाश कर थकान
तुमही हर सकते हो
क्या शुभ क्या अशुभ ,
तुम कण वासता हो ।
फिर क्यों दिग्भर्मित मैं ??
उखाड दो न इस दासता को ,
जग मय आप आप मय जग
भेद विभेद क्षण भंगुर है ,
फिर क्यों इस भेदता का,,
प्रखर ज्ञान होता?/
क्यों? जान कर भी स्वाभिमान सोता ॥
क्यों कुंद है ??,,,,,,,,,
सब ज्ञान की नाले …।
क्यों सुप्त है ??,,,,,,,,,,,
सब सत्य की डाले ……
अमरत्व कहाँ सोता है ???
क्यों मृत्यु से रोता है ??
ये नवीनता है नव संचार है
नए युग का प्रसार है
दुःख क्या इस में ???
जीर्ण से जीर्ण नव्य होंगे
म्रत्यु तो नव जीवन का प्रसार

9 comments:

  1. बढिया प्रस्तुति।बधाई।

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  2. waqay me bahut sundar


    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  3. क्यों जानकार भी स्वाभिमान सोता है?...ऐसे प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते । सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. क्यों? जान कर भी स्वाभिमान सोता ॥
    क्यों कुंद है ??,,,,,,,,,
    सब ज्ञान की नाले …।
    क्यों सुप्त है ??,,,,,,,,,,,
    सब सत्य की डाले ……
    मन की बेचैनी को बड़ी अच्छी तरह शब्दों में पिरोया है...
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. नए युग का प्रसार है
    दुःख क्या इस में ???
    जीर्ण से जीर्ण नव्य होंगे
    म्रत्यु तो नव जीवन का प्रसार

    yahi to jeevan ka atal satya hai.......aur sansaar to chalega hi aise .........bas swyam ko lay karna hoga us amratva ke sath phir koi kuntha nahi, koi bhay nhi ........sab ek ho jayenge.

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  6. kyo jaan kar bhi swabhimaan sota.... kahan likh rahe hain aajkal aisi kavita... dinkar ki jhalak hai aapme... sundar rachna

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  7. praveen ji

    ab mujhe aap apna shishya bana lijiye ... is kavita me kavi ke man ke dard ko jis tarah se aapne ubhaara hai ,wo atulniya hai ... mera salaam ek baar phir kabool kare...

    aabhar aapka

    vijay

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  9. दुःख क्या इस में ???
    जीर्ण से जीर्ण नव्य होंगे

    जीर्णता तो वरदान है नव्यता के रसास्वादन के लिये.
    सुन्दर रचना

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