तेरा ये बनावटी सा मुस्कराना बुरा लगता है,,,
कभी हाँ कभी न तेरा ये बहाना बुरा लगता है ,,,,
कितनी तंगी खुशहाली साथ काटी थी हमने,,,,,
ये जिन्दगी यूँ अधर में छोड़ जाना बुरा लगता है ,,,
उम्र आंकते हुए खिची थी लकीरे जो दीवारों पर,,,
आज उन लकीरों को मिटाना बुरा लगता है ,,,
भुर भुरा कर गिर गयी चौखट पुराने घर की ,,,
बनावट के नाम पर घर गिराना बुरा लगता है,,,
आशूं छलक पड़ते है देख माँ की तस्वीर को,,,
अभी बच्चा ही तो हूँ यूँ छोड़ जाना बुरा लगता है ,,,
वो कैसे भूत शैतान कह कर बुलाया करती थी ,,,
अब किसी का नाम लेकर बुलाना बुरा लगता है,,,,
हर पल सुलगता हूँ उन पुराने दिन के अहसासों में,,
एक पल को भी अहसासों को भुलाना बुरा लगता है ,,,
कभी हाँ कभी न तेरा ये बहाना बुरा लगता है ,,,,
कितनी तंगी खुशहाली साथ काटी थी हमने,,,,,
ये जिन्दगी यूँ अधर में छोड़ जाना बुरा लगता है ,,,
उम्र आंकते हुए खिची थी लकीरे जो दीवारों पर,,,
आज उन लकीरों को मिटाना बुरा लगता है ,,,
भुर भुरा कर गिर गयी चौखट पुराने घर की ,,,
बनावट के नाम पर घर गिराना बुरा लगता है,,,
आशूं छलक पड़ते है देख माँ की तस्वीर को,,,
अभी बच्चा ही तो हूँ यूँ छोड़ जाना बुरा लगता है ,,,
वो कैसे भूत शैतान कह कर बुलाया करती थी ,,,
अब किसी का नाम लेकर बुलाना बुरा लगता है,,,,
हर पल सुलगता हूँ उन पुराने दिन के अहसासों में,,
एक पल को भी अहसासों को भुलाना बुरा लगता है ,,,
वो कैसे भूत शैतान कह कर बुलाया करती थी ,,,
ReplyDeleteअब किसी का नाम लेकर बुलाना बुरा लगता है,,,,
वाकई उत्श्रृंखलताओं को जब कोई छोड़ता है तो अटपटा तो लगता ही है.
सुन्दर
एहसासों को बखूबी लिखा है.
ReplyDeleteहर पल सुलगता हूँ उन पुराने दिन के अहसासों में,,
ReplyDeleteएक पल को भी अहसासों को भुलाना बुरा लगता है ,,,
waah .........bahut khoob .
ehsaaason ko kya shabd diye waah...
ReplyDeletewaah....
ReplyDeletekunwar ji,
उम्र आंकते हुए खिची थी लकीरे जो दीवारों पर,
ReplyDeleteआज उन लकीरों को मिटाना बुरा लगता है ,
-वाह!! बहुत बढ़िया...
बनावट और बनावटी कर लें बनाबट और बनाबटी को.
भुगते अहसास जीवन भर साथ रहते हैं -खट्टे भी मीठे भी !
ReplyDeleteसुंदर रचना... इस कविता कि सबसे ससक्त पंक्तिया... भुर भुरा कर गिर गयी चौखट पुराने घर की ,,,
ReplyDeleteबनावट के नाम पर घर गिराना बुरा लगता है,,,
parveen ek baar fir se aapne mujhe bhi unbachpan ki baaten yaad diladi aaj voh din yaad ate hain to aaj ki yeh viyast jindgi ke baare mein socho to such mein bura lagta hai suhane to wahi din hote hain bachpan ke
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