खुल जाती है मेरी आँखे,,,,
दरवाजे की हल्की आहट से ,
और होता है अहसास तुम्हारे करीब होने का,
और हो भी क्यूँ ना ?
खिड़की पर करीने से पड़े पर्दे,
तुम्हारी उंगलियों की थिरकन अभी तक संभाले है,,
विषयवार रैक ने सलीके से रखी किताबे,
तुमसे बाते करने का जरिया ही तो है ,,
साफ़ महसूस करता हूँ तुम्हारे बालो की खुशबू,
जो अभी तक तकियेके लिहाफो में समाई हुयी है,,
शायद तुम्हारे लिए इसका कोई मतलब न हो,
पर सहेज कर रखी मही मैंने वो शर्ट,,
जिसपर बटन टांकते हुए टपकी थी .
तुम्हारे पसीने की कुछ एक बुँदे ,,,
भड़भड़ा कर उठ पड़ता हूँ मै सोते सोते,
हवा के साथ मेरे नथुनों में पैविस्त होती ,
तुम्हारी खुशबू ,
मुझे सोने नहीं देती जो समाई हुई है घर की ,
हर चीज में,,
तुम पागल ही कहोगी,
अब मै तुम्हारी तस्वीरों से बाते करता हूँ .
मुस्कराता हूँ ,चूमता हूँ .
और आंशुओ से नहलाता भी ,
और खो जाता हूँ तुम्हारे साथ की स्म्रतियो में.
यैसा होता है दिन में कई कई बार ,,
अब निर्थक है प्रयाश अपने आस्तित्व की,
तलाश का,
तुम्हारे बिना मै आस्तित्व हीन हूँ ,,,,,
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