वो भारत का देव मुझे ताके जाता था ,,,,
करूणा से लथ पथ अंतस में झांके जाता था ,,,,
कंधो पर पिचकारी के थैले टंगे ,,,,,
हाथो में धूसर रंग लिए ,,,,,
वन प्रतिमा सा अडिग खड़ा है ,,,,,
मानो मौन आवाहन किये ,,,,,
वो कान्ति मुझे अब झुलसाती है,,,,
जो उसके चेहरे की थाती है ,,,,
दर्ग अपलक देख रहे थे आने जाने वालो को ,,,,
उनमे फैली नीरवता हर पल रूदन सुना जाती ,,,,
मुट्ठी में भीचे पैसो की खन खनभूंखे पेट दिखा जाती ,,,,,
वो बड़ी संकुचित धीमी बोली से चिल्लाता था ,,,,
महगाई के अट्टहास में मौन पुनः हो जाता था ,,,,,
मुट्ठी के सिक्को को गिनता ,,,,
गिनता फिर रंगों के पैमानों को ,,,,
कभी फटी कमीज के धागों में उलझाता ऊँगली ,,,,
मानो अपने व्यवधानों की क्षमता आँक रहा हो ,,,,,
फिर झट से धागों को सयंत करता ,,,,,
ये देखो वो देखो गाडी के पीछे भाग रहा ,,,,,
ठिठक गया अब मौन हुआ ,,,,,,
फिर सूखी हंसी फैला देता ,,,
यह लगे या वहा लगे ,,,,,,
पर करुणा तीर चला देता ,,,,
हार मिली तो फिर सयंत हो आँखों से अंशु पोछ दिए ,,,,
याद उसे आते हर पल घर भूंखे पेट लिए ,,,,,
फिर उठा कर्म का झोला वो भागे जाता था ,,,,,
कंधो पर पिचकारी के थैले टंगे ,,,,,
हाथो में धूसर रंग लिए ,,,,,
वन प्रतिमा सा अडिग खड़ा है ,,,,,
मानो मौन आवाहन किये ,,,,,
वो कान्ति मुझे अब झुलसाती है,,,,
जो उसके चेहरे की थाती है ,,,,
दर्ग अपलक देख रहे थे आने जाने वालो को ,,,,
उनमे फैली नीरवता हर पल रूदन सुना जाती ,,,,
मुट्ठी में भीचे पैसो की खन खनभूंखे पेट दिखा जाती ,,,,,
वो बड़ी संकुचित धीमी बोली से चिल्लाता था ,,,,
महगाई के अट्टहास में मौन पुनः हो जाता था ,,,,,
मुट्ठी के सिक्को को गिनता ,,,,
गिनता फिर रंगों के पैमानों को ,,,,
कभी फटी कमीज के धागों में उलझाता ऊँगली ,,,,
मानो अपने व्यवधानों की क्षमता आँक रहा हो ,,,,,
फिर झट से धागों को सयंत करता ,,,,,
ये देखो वो देखो गाडी के पीछे भाग रहा ,,,,,
ठिठक गया अब मौन हुआ ,,,,,,
फिर सूखी हंसी फैला देता ,,,
यह लगे या वहा लगे ,,,,,,
पर करुणा तीर चला देता ,,,,
हार मिली तो फिर सयंत हो आँखों से अंशु पोछ दिए ,,,,
याद उसे आते हर पल घर भूंखे पेट लिए ,,,,,
फिर उठा कर्म का झोला वो भागे जाता था ,,,,,
वो भारत का देव मुझे ताके जाता था ,,,,
6 comments:
अच्छी कविता है।
मार्मिक और राष्ट्रभक्ति की सच्ची संदेश देती हुई कविता
बहुत ही मार्मिक …………राष्ट्र भक्ति से ओत प्रोत सम्वेदनशील रचना।
राष्ट्र भावना से ओतप्रोत
प्रवीण जी
आप तो अत्यंत मार्मिक रचना से रूबरू करवाया.
कमोबेश स्थिति तो यही है
सुन्दर रचना
मार्मिक अभिव्यक्ति!! बहुत उम्दा!
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