Sunday, 28 March 2010

हुआ हूँ फिर उपस्थित तेरे सम्मुख ,,,, ओ दयानिधे(प्रवीण पथिक) ,,,,

अतृप्त इच्छाओ की ,,,
अधबनी नौका लेकर ,,,
हुआ हूँ फिर उपस्थित तेरे सम्मुख ,,,,
ओ दयानिधे ,,,,
टकटकी लगा रखी है ,,,,
तेरी हर अनुग्रही क्रिया पर ,,,,
की काश कोई द्रष्टि इधर भी हो ,,,,
ओ समग्र नियन्ता ,,,,
मेरी इस मौनाकुल पीड़ा को ,,
तुम समझ सकते हो ,,,,
क्यों की तुम हो दिव्य द्रष्टा ,,,
हर्दय के मंथन से निकली हुई ,,,
अतृप्त इच्छाओ की तीव्र वेदनाये ,,,
बुलबुले सा एकत्र हो कर,,,
बना रही है एक अभेद पर्त,,,
अज्ञान और अनिच्छा की ,,,
सम्मिलन दूर दिख रहा है ,,,,
ज्ञान कुंद और सुप्त सा है ,,,,
फिर भी मै आशान्वित हूँ ,,,
तेरी आभाषी प्रवर्ती को लेकर,,,
तेरे साथ काल्पनिक सम्मिलन को लेकर ,,,
आनंददायक मिलन को लेकर ,,,
आत्मा की अत्रप्त्ता बढती ही जा रही है ,,,,
सजगता और स्वीकार्यता के छल ,,,
अब नहीं सहन होते ,,,
समग्र बंधन अब सिथिल है ,,,
नहीं झेल पाते मिलन की उत्कंठा के उफान को ,,,
बस अब और नहीं हे प्रिये बंधन खोल ,,,
आलिंगन में ले लो

4 comments:

अरुण चन्द्र रॉय said...

aalingan me le lo... prem ki uttkatta ke vibhinna charno ko bahut sanjidgi ko vyakt kiya hai aapne...

vandana gupta said...

prem ka ek roop ye bhi hota hai...........aur jiske prati hai use naman hai...........is gahan vedna ka ka ant to sammilan mein hi hai ...........ekakar hone par hi sampoorna vishranti ka anubhav hota hai..........bahut hi gahan.........us jagatniyanta ke prati bahut hi utkat bhav.

Satish Saxena said...

कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें !

vijay kumar sappatti said...

praveen ji ...
main aaj natmastak ho gaya ,aapke saamne, aapki is kavita ko padhkar .... aaj aapne ye kavita likhkar mujhe ek kavita ki yaad dila di hai , jo maine barso pahle geetanjali me padhi thi jo gurudev taigore ne likha tha ...

mai aapke lekhan ko nama karunga aur aapko salaam ....

mere paas aur shabd nahi hai ...lekin praveen ji , this is the ultimate poem ...

aabhar aapka

vijay