मैंने कब कहा तुम मुझे ,,,,
अपने समानान्तर खड़ा करो दो,,,
मेरा जीवन खुशियों से भर दो .,,,,
आरक्षण की बोली भी ,,,,
मैंने नहीं बोली ,,,,,
फिर क्यूँ तुमने की ठिठोली ?
जाति और उपजाति के नाम पर,,,
आरक्षण देकर ,,,,
शायद इससे तुम्हारी राज नैतिक रोटियाँ,,
सिकती है,,,,
इन मुद्दों से ही तो राजनीति की गोटियाँ ,,,
बिछती है ,,,,
नहीं आबश्यकता मुझे अनुदानों की ,,,
नहीं आबश्यकता मुझे सम्मानों की ,,,
जनतंत्र गणतंत्र प्रजातंत्र ,,,,
का अर्थ मैं नहीं जानता,,,
और ना ही मांगी मैंने कभी ,,,
राहत राशि या राहत सामग्री ,,,
मुझे तो बर्षा चाहिए,,,
जो कि अब नहीं होगी,,,,
अब तुम चाहे सूखा ग्रस्त घोषित करो,,,
या फिर अकाल ग्रस्त ,,,,
अब चाहे तुम खुद के बजट के पैसे खाओ ,,,
या फिर केंद्र कि राहत भी उड़ा जाओ ,,,,
मुझे तो विपन्नता में ही जीना है ,,,
पानी नहीं आसूं ही पीना है,,,
मुझे मालुम है इस बार ,,,
मुन्ने के लिए जूते नहीं ला सकूँगा ,,,
बाबू का कुर्ता भी नहीं सिलबा सकूँगा ,,,
कहाँ से आएगी मुन्ना कि मां के लिए ,,,
चौडी किनारे वाली साड़ी ,,,
और विजुरिया का गौना भी तो नहीं हो पायेगा ,,,
क्यों कि इस बार धान नहीं होगा ,,,
फिर भी मुद्रा स्फीति कि दर बढेगी ,,,
सरकार प्रगति और प्रगति करेगी ,,,.
और खूब अनुदान बांटेगी,,,
सूखा आपदा राहत के नाम पर,,,
भले ही अखबारों में ही ,,,,
क्यों कि उसे वोट जो चाहिए ,,,
हो सकता है इस बार पड़ जाए ,,,
खाने के भी लाले,,,
पर मैं हार नहीं मानूगा,,,,
खून और किडनी भी नहीं बेचूंगा ,,,,
भले ही शहर कि झुग्गियों में रहना पड़े ,,,,
रह लूँगा ,,,,
जिल्लत और बदहाली में जीना पड़े,,,,,
तो जी लूँगा,,,
क्यों कि पेट जो भरना है ,,,,
कभी स्वेच्छा से आन्दोलन और प्रतिवाद ,,,
भी नहीं करूँगा,,,
यूँ जीते हुए भी तिल तिल मरूँगा ,,,,
क्यों कि यही तो,,,,,
मेरी नियति है,,,
अपने समानान्तर खड़ा करो दो,,,
मेरा जीवन खुशियों से भर दो .,,,,
आरक्षण की बोली भी ,,,,
मैंने नहीं बोली ,,,,,
फिर क्यूँ तुमने की ठिठोली ?
जाति और उपजाति के नाम पर,,,
आरक्षण देकर ,,,,
शायद इससे तुम्हारी राज नैतिक रोटियाँ,,
सिकती है,,,,
इन मुद्दों से ही तो राजनीति की गोटियाँ ,,,
बिछती है ,,,,
नहीं आबश्यकता मुझे अनुदानों की ,,,
नहीं आबश्यकता मुझे सम्मानों की ,,,
जनतंत्र गणतंत्र प्रजातंत्र ,,,,
का अर्थ मैं नहीं जानता,,,
और ना ही मांगी मैंने कभी ,,,
राहत राशि या राहत सामग्री ,,,
मुझे तो बर्षा चाहिए,,,
जो कि अब नहीं होगी,,,,
अब तुम चाहे सूखा ग्रस्त घोषित करो,,,
या फिर अकाल ग्रस्त ,,,,
अब चाहे तुम खुद के बजट के पैसे खाओ ,,,
या फिर केंद्र कि राहत भी उड़ा जाओ ,,,,
मुझे तो विपन्नता में ही जीना है ,,,
पानी नहीं आसूं ही पीना है,,,
मुझे मालुम है इस बार ,,,
मुन्ने के लिए जूते नहीं ला सकूँगा ,,,
बाबू का कुर्ता भी नहीं सिलबा सकूँगा ,,,
कहाँ से आएगी मुन्ना कि मां के लिए ,,,
चौडी किनारे वाली साड़ी ,,,
और विजुरिया का गौना भी तो नहीं हो पायेगा ,,,
क्यों कि इस बार धान नहीं होगा ,,,
फिर भी मुद्रा स्फीति कि दर बढेगी ,,,
सरकार प्रगति और प्रगति करेगी ,,,.
और खूब अनुदान बांटेगी,,,
सूखा आपदा राहत के नाम पर,,,
भले ही अखबारों में ही ,,,,
क्यों कि उसे वोट जो चाहिए ,,,
हो सकता है इस बार पड़ जाए ,,,
खाने के भी लाले,,,
पर मैं हार नहीं मानूगा,,,,
खून और किडनी भी नहीं बेचूंगा ,,,,
भले ही शहर कि झुग्गियों में रहना पड़े ,,,,
रह लूँगा ,,,,
जिल्लत और बदहाली में जीना पड़े,,,,,
तो जी लूँगा,,,
क्यों कि पेट जो भरना है ,,,,
कभी स्वेच्छा से आन्दोलन और प्रतिवाद ,,,
भी नहीं करूँगा,,,
यूँ जीते हुए भी तिल तिल मरूँगा ,,,,
क्यों कि यही तो,,,,,
मेरी नियति है,,,
9 comments:
बहुत सुंदर लिखा है .. आरक्षण का लाभ तो उपरी स्तर के लोगों को ही मिल पाता है .. गरीब तो आज भी जीवन के सारे दर्द झेलने को विवश है .. उनके दर्द को बखूबी व्यक्त किया है आपने !!
बेहतरीन ढंग से त्रासदी चित्रण
बहुत खूब
वाकई ठिठोली ही तो है
यथार्थ को दर्शाती हुई सुन्दर रचना
बिलकुल सही कहा है गरीब की यही नियति है ।मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है गरीब के जीवन की शुभकामनायें आशीर्वाद्
बहुत सुंदर लिखा है, आरक्षण का लाभ तो उपरी स्तर के लोगों को ही मिल पाता है.
बहुत खूब .....आज आपने फिर प्रभावित किया...एक सच को बेहद स्पष्ट तरीके से सामने रख दिया..मैं देख रहा हूँ धार बढ़ रही है..और यही मैं चाहता भी हूँ....
aap sabhi mitro ka bhut bhut aabhaar apna sneh yun hi banaye rakhe saadar
praveen pathik
सामयिक व्यवस्था एवं घटनाओं पर अपने विचारों को शब्दों का आलम्ब देकर कविता को प्रस्तुत किया है .
शुभकामनाएं....
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