Thursday, 27 August 2009

क्यों की कथित प्रगति वादी जो हूँ ,,,,, (कविता)


कर रहा था आत्म मंथन ..
प्रगति और प्रगतिशीलता का ,,
अवचेतन मन से ,,
तौल रहा था अपनी नीति,
संस्क्रती की अवनति,,
व्यवहारिकता के तराजू पर रख कर,,,
और बार बार उठा रहा था लान्छन,,,
अपने जमीर पर ,,
दे रहा था शाव्दिक गलियाँ ,,

अपनी नियति को ,,

हर बार दे रहा था पश्चिमता की दुहाई ,,
प्रगति की राह पर ,,
क्यों की कथित प्रगतिवादी जो हूँ ,,,
जड़ से कटना नहीं चाहता ,,
पर प्रगति जो करनी है ,,

नहीं खोना चाहता पहिचान को ,,
पर नयी पहिचान कैसे लूंगा ,,,

खुद को प्रगति वादी कैसे कहूंगा ,,
सम्पूर्णता और अपूर्णता के द्वंद में ..

अर्ध विछिप्त सा फिर रहा हूँ,,
पकड़ रखी है प्रगति की सीढ़ी ,,,

संस्क्रती और सभ्यता के जिस्म पर ,,
पैर रख कर,,,
दर्द है ,,
आँख भरी है ,,,
पर भावशून्य हूँ ,,,

Friday, 21 August 2009

मै धन्य हो गया ,,,,,(कविता)



निरन्तर संकुचित होती ,,
अपनी भावनाओं को सकेंद्रित कर ,,,
परिवर्तन की राह की ओर ताकता हुआ ,,
आत्मनिरिक्षण कर रहा हूँ,,
निज परिक्षण कर रहा हूँ ,,,
कुछ उनीदी सी छा रही है ,,
पर चैतन्य हूँ ,,,
कर रहे है चेष्टा मार्ग अबरुद्ध करने की ,,,
मौन के विशाल बबंडर,,,,
आ रही है एक नयी चुनौती ,,
हर पग पर ,,
गम्भीरता को मैंने ओढ़ रक्खा है ,,
फिर भी विचल हूँ ,,
स्थर होने के प्रयत्न में भी ,,,
चल हूँ ,,,
विपरीत परिस्थितिया ,,
आकास्मिक आघात कर रही है ,,,,
विपन्ता निरन्तर घात कर रही है ,,,
पर निज का खुला पन ,,,
मिलन की राह तैयार कर रहा है ,,,
उस पर तेरा सम्बोधन ,,,
सम्मिलन की राह तैयार कर रहा है ,,,
तभी कुछ हवाओं सी सनसनाहट हुई ,,,
और मै विलुप्त हो गया ,,
अब तू ही है "मै " लुप्त हो गया ,,,
ओ अकिंचन दिव्यद्रष्टा ,,,
मै धन्य हो गया ,,,,,

Friday, 14 August 2009

दंगा (कविता)


एक चौराहा था , सुन्दर सा चौराहा ,,
चहकता हुआ चौराहा , महकता हुआ चौराहा ,,,
वहा उड़ती हुई पतंगे थी , घूमती हुई फिरंगे थी ....
सजती हुई मालाये थी,, लरजती हुई बालाये थी ,,,
चमकते चमड़े की दूकान थी,महकते केबडे की भी शान थी ,,
रफीक टेलर भी वही था , और हरी सेलर भी वही था ,,,
वहा पूरा हिन्दुस्तान था , हर घर और मकान था ,,
मेल मिलाप और भाई चारा था , कोई नहीं बेचारा था ,,
पर एक चीज वहा नहीं थी , जो न होना ही सही थी ,,
वहा नहीं था तो पुरम ,पुर और विहार नहीं था ...
वहा नहीं था तो दालान ,वालान और मारान नहीं था,,,
गली कासिम जान भी नहीं थी, और गली सीता राम भी नहीं थी ,,,,
वहा हिन्दू भी नहीं था , वहा मुसलमान भी नहीं था ,,
था तो केवल हिन्दुस्तान था , था तो केवल भारत महान था ,,
फिर एक आवाज आई मैं हिन्दू हूँ ,,
उसकी प्रतिध्वनी गूंजी मैं मुसलमान हूँ ,,,
और उस लय का गला घुट गया ,जो कह रही थी मैं हिन्दुस्तान हूँ ,,
सुनते ही सन्नाटा पसर गया ,,
उड़ते उड़ते हरी पतंग ने लाल पतंग मजहब पूछ लिया ,,
हरी ने रफीक के सीने में चाकू मार दिया ,,
सब्जियों में भी दंगा हो गया , अपना पन सरेआम नंगा हो गया ,,
बैगन ने आलू के कान में फुसफुसाया ,,मियां प्याज को पल्ले लगाओ ,,
कद्दू ने कुछ जायदा ही फुर्ती दिखाई,प्याज को लुढ़का दिया,,,
और वो पहिये के नीचे आ गया ,,
लहसुन ने मिर्ची को मसल दिया , क्यों की वो हिन्दू थी ,,
अब तो वहा पर कोहराम था ,क्यूँ की दंगा सरेआम था ,,
एक दूकान दूसरी दूकान से धर्म पूछ रही थी ,,
एक नुक्कड़ दूसरे नुक्कड़ से धर्म पूछ रहा था ,,
अब वहा पे वालान थे ,अब वहा पे मारान थे ,,
अब वहा पे पुरम था , अब वहा पे विहार भी था ,,
अगर कुछ नहीं था तो ,,
वहा पे हिन्दुस्तान नहीं था , मेरा भारत महान नहीं था ,,
अब वहा पर केवल हिन्दू था और मुसलमान था ,,
और वीरान ही वीरान था ,,
तभी किसी ने कहकहा लगाया और ताली बजाई ,,,
फिर उसने लम्बी साँस ली और ली अंगडाई,,
वो मुस्कराया क्यूँ की अब उसके मन का जहान था,,
फिर वह धीरे से बुदबुदाया मैं हिन्दू हूँ ,,
फिर वह धीरे से फुफुसाया , मैं मुसलमान हूँ ,,
और चल दिया अगले चौराहे पर,,
हिन्दुस्तान को हिन्दू और मुसलमान बनाने के लिए ,,
क्यों की यही तो उसका धर्म है और कर्म भी ,,
आखिर नेता जो है .....

Thursday, 13 August 2009

आ जा श्याम तोहे प्राण पुकारे ,(,कविता)


जा श्याम तोहे प्राण पुकारे ,,,

जा श्याम तेरी राह निहारे ,,,

नैना व्याकुल कारे कारे,,,

दे दो दर्शन मोहन प्यारे ,,,

प्यासा हूँ बस प्यास बुझा दो ,,,

मैं ना हूँ , हो राधे राधे ,,,

जीवन के अनमेल रसो से ..

द्वार पड़ा हूँ आन तिहारे ,,,

जा श्याम तोहे प्राण पुकारे ,,,

जा श्याम तेरी राह निहारे ,,,

तेरी बंसी की सुन्दर ताने ,,,

सुन कर तेरे मीठे गाने ,,,

सुध बुध खोऊ ध्यान लगाऊं ,,

पर किंचित चैना मैं ना पाऊं ,,,,

मिलने को बेसुध खडा हूँ ,,,

मधुमय मन के उजियारे ,,,

जा श्याम तोहे प्राण पुकारे ,,,

जा श्याम तेरी राह निहारे ,,,

वन वन तट तट मैं तो घूमूं,,,

पग पग तेरी पद रज चूमूं ,,,

नदनंदन जीवन धन ,,

मधु सूदन दिग्दर्शन ,,,

मुझसे अपना मिलन करा दे ,,,

हे यदुवर , हे मोहन प्यारे ,,,

जा श्याम तोहे प्राण पुकारे ,,,

जा श्याम तेरी राह निहारे ,,,

मैं अबनी तू बादल साजन ,,,

वर्षो वर्षो बन प्रेमाघन ,,,,

तन भीगे और मन भीगे ,,,

भीगे मेरा सारा जीवन ,,,

पथ पथ घूमा पथिक बना हूँ ,,

राह दिखा दो जसुमति प्यारे ...

जा श्याम तोहे प्राण पुकारे ,,,

जा श्याम तेरी राह निहारे ,,,

Monday, 10 August 2009

क्या मालुम था मेरा शोणित केवल पानी कहलायेगा (


aआज हमारे शहीदों के साथ क्या हो रहा है जिसे जब जो दिल में आता है बोल देता है ये सोचने का प्रयाश भी नही करता की उसके द्बारा बोले गए शब्द कहाँ पर लगते है आख़िर आप उनका सम्मान नही कर सकते तो अपमान तो ना करो , कभी कोई कहता है ये मुठ भेड़ग़लत है , कभी कोई कहता है अग़रशहीद नही होता तो घर पर (........) भी नही आता शहीदों की आत्मा जो कही पर जरुर होगी जब ये सब देखती होगी तो उन्हें कैसा महसूस होता होगा उसी दर्द को लिखने का प्रयाश किया है



क्या मालुम था मेरा शोणित ,,
केवल पानी कहलायेगा ,,,
क्या मालुम था जीवन अर्पण ,,
ओछा आँका जाएगा ,,,
क्या मालुम था मरने पर भी ,,
अपमानित होकर रोना होगा ,,,
मेरी विधवाओं को पल पल ,,,
दर्दो को ही ढोना होगा ....
क्या मालुम था बलिदानी किस्सा ,,
अखबारों मे खो जाएगा,,,
क्या मालुम था मेरा शोणित ,,

केवल पानी कहलायेगा ,,,

उंगली उठेगी बलिदानों पर ,,
ये सत्कार भला होगा ,,,
लहू अश्रु रोयेगा वो ,,,
जो बलिदानी चाल चला होगा ,,,
आग लगेगी सीने मे ,,,
रो आसूं पी जाएगा ,,,,
क्या मालुम था मेरा शोणित ,,

केवल पानी कहलायेगा ,,,

खूब भुनायेगे बलिदानों को ,,,
वो वोटो की खातिर ,,,
खूब सुनायेगे भाषण ,,,
वो नोटों की खातिर ,,,
नेताओं की साझ सजेगी ,,,
प्यासा सैनिक रह जाएगा ,,
क्या मालुम था मेरा शोणित ,,

केवल पानी कहलायेगा ,,,

क्या मालुम था वीरो का अर्पण ,,,
पैसे से तोला जायेगा ,,,
क्या मालुम था बलिदानों को ,,,
उपहासों मे बोला जाएगा,,,
धूल पड़ेगी तस्वीरों पर ,,,
कुछ मोल नहीं रह जायेगा ,,,,
क्या मालुम था मेरा शोणित ,,

केवल पानी कहलायेगा ,,,

क्या मालुम था जीवन अर्पण ,,

ओछा आँका जाएगा ,,,

Saturday, 8 August 2009

हाय अठन्नी के इतने चेहरे,, ,,{कविता}



पैसा बहुत महत्व पूर्ण चीज है ,, पर उसकी महत्वता व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर है किसी के लिए किसी राशि का होना न होना बराबर है और किसी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि मैं ने गाँव के आम जन के जीवन को बहुत नजदीक से देखा है एक एक पैसा उनके लिए कितना महत्व पूर्ण है ,, इसे मैंने अनुभव किया है ,,,आज भी गाँव मेंकितने कम पैसे में इतनी अधिक चीज मिल जाती है जिसकी हम शहर में कल्पना ही कर सकते है ,,, क्यूँ ही न ये उनकी बिपन्नता के कारण हो इस कविता में मैंने आम जन की या कह सकते हो ग्रामीण आम जन की पैसे की उपयोगता और उपलब्धता को दर्शाया है




एक अठन्नी उछली तो ,,
आकर गिरी हाथ में मेरे
,,,
विस्मित हो मैंने देखा,,
और चौक पड़ा,,,,
हाय अठन्नी
के
इतने चेहरे,,
मै कुछ कहता तब तक ..
वो बोली ,,,,
मै कागज का फुर
फुर पंखा
,,
शक्कर के दो कम्पट हूँ ,,,
मै रोरी की पुड़िया,,,
और गंगा
का
सम्पट हूँ ,,,,
मै धनिये की गाडिया,,,,
अदरक की गांठी
,,,
मिर्चे की तीखी ,,,
फलिया हूँ ....
मै खडिये का डेला
मुल्तानी मिट्टी,,,
पडूये की डलिया हूँ ,,,,
मै पेन की
निव,,,
हूँ पेन की स्याही और चौपतिया हूँ ,,,
मै कपूर का टुकडा
फूलो
की माला और ,,
घी की बत्तिया हूँ ,,,
अब मै विस्मित था
,,,
सुनता जाता था
उसकी बोली ,,,
कुछ कहता इससे पहले ,,,
वो उछली और
उसकी होली ,,,
मै हतप्रभ
था ,,,
अब कुछ नहीं था हाथ में मेरे
बस
सोच रहा था ,,
हाय अठन्नी
के इतने चेहरे
एक अठन्नी उछली तो ,,
आकर गिरी हाथ में मेरे
,,,

Tuesday, 4 August 2009

जब तू ही ना है फिर तेरी यादे क्यूँ कर आती है ,, (कविता)


आज रच्छाबंधन का पावन पर्व है, और इस पावन पर्व पर बहनों की महत्ता समझ में आती है,बहन वो पावन नदी है स्वयम को तिरोहित कर देती है अपने भाई और उसके हित के लिए बहन दीपक की वह ज्योति है जो स्वम तो जलती है पर दीपक तक अग्नि को नहीं पहुचने देती है , बहन की महत्ता वह व्यक्ति समझ सकता है ,,जिसे बहन का प्यार मिला है , और वह भी जिसे नहीं मिला है ,, परिवर्तन प्रक्रति का नियम है और म्रत्यु परम सत्य इस सत्य ने मुझे भी मेरी बहन के प्यार से दूर किया , पर पुनरावर्ती भी भी प्रक्रति का एक अटल सत्य है, और इस सत्य ने मुझे मेरी खोई बहन मिला दी ,, इस अंतर्जाल की दुनिया में , जहाँ पर रिश्ते केवल मजाक भर है , पर भी मुझे मेरी बहन मिल सकती थी मैंने कभी नहीं सोचा था साधारण जान पहिचान से भाई बनने का जो सुख मैंने अनुभव किया अवर्णीय है , मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की मुझे मेरी खोई हुई बहन मिल गयी है ,,, आज कितने समय के बाद राखी बाधूंगा मुझे नहीं पता , पर अनुभव कुछ खो कर पाने जैसा होगा , ये कविता मै अपनी इस बहन को समर्पित कर रहा हूँ




बहना तेरी बाते क्यूँ पल पल खूब सताती है .,,
जब तू ही ना है फिर तेरी यादे क्यूँ कर आती है ,,
क्यूँ तेरे हंसने की बोली मुझको खूब रुलाती है ,,
क्यों मेरे माथे की रोली आंसू भर ले आती है,,,
जब भी व्याकुल हो मै गीतों की सांझ सजाता हूँ ,,,
गीतों की धुन में भी बस तेरी यादो को ही पाता हूँ,,,
जब कभी वेदनामय हो दे आवाज बुलाता हूँ ,,,
तू ना आई फिर भी तेरे अहसासों को पाता हूँ ,,,
बहना हर राखी पर राखी तेरी याद दिलाती है ,,,
इस राखी की हर पाखी हर पल तुझे बुलाती है ,,,
बहना तेरी बाते क्यूँ पल पल खूब सताती है .,,
जब तू ही ना है फिर तेरी यादे क्यूँ कर आती है ,,
बहना तुझको आज बुलाते घर ,आँगन चौबारे है,,
दरवाजा ड्योढी चौका छत व्यथित सभी बेचारे है ,,,
मंदिर की ज्योति भी बहना अब टीम-२ कर ही जलती है,,,
मानो तेरी यादो की धुन में, हर पल आहे भरती है,,,
बहना तेरी तस्वीरों को संदूकों में खूब सहेजा है,,,
सब यादो को खूब सहेजा है सब वादों को खूब सहेजा है ,,
जब पवनी से हिलती घंटी,मानो तू इठलाती है ,,,
जब मेघो में छिपती बिजली ,मानो तू शर्माती है,,,
बहना तेरी बाते क्यूँ पल पल , खूब सताती है .,,
जब तू ही ना है फिर तेरी यादे ,क्यूँ कर आती है ,,
बहना बाबू की रोती आँखे तूने ना देखि, पर वो रोते है ,,
तेरी यादो के लम्हों को पल पल वो, आंसूं बन धोते है ,,
जब से तू ना है पुस्तक बेकार पड़ीं है ,कैरम बेकार पड़ा है ,,
माँ की ढोलक भी बेजार पड़ी है ,,बेकार गिटार पड़ा है,,
माँ तो पूजा में भी , अब तेरी यादो में रोती है ,,
उसकी हर पूजा में बस तेरी यादे होती है,,
हर दिन माँ तेरी सारी चीजे, ला मुझे दिखाती है ,,,
कहती है तू आने को है ,, मुझसे सब सम्भलाती है,,,
बहना तेरी बाते क्यूँ पल पल , खूब सताती है .,,
जब तू ही ना है फिर तेरी यादे ,क्यूँ कर आती है ,,