जब संपुष्टता के कुछ पंख ,,,
निर्भीकता के पथ पर ,,,
भरते है अनन्त लक्ष्य की उड़ान ,,,
अदम्य जीवन का सच ,,
मानो होने लगता है मुखरित ,,
यही तो पहली उड़ान है ,,,
और शायद अंतिम भी ,,
क्यों की यही तो इति है ,,,
और अति भी ,,,
भ्रम सारे हो जाते है विन्यासित ,,,
छोड़ कर अस्पस्टता का दामन ,,,
मन तीव्र पीड़ा से निकल
खुद ढूंडने लगता है अपने लक्ष्य को ,,
जो की है निश्चय ही संतुस्टी ,,,
यही तो है मिलन की इति भी ,,,
ओ असीम नियन्ता ,,,
और तुझे जानने का कारक,,,
और कारण भी
निर्भीकता के पथ पर ,,,
भरते है अनन्त लक्ष्य की उड़ान ,,,
अदम्य जीवन का सच ,,
मानो होने लगता है मुखरित ,,
यही तो पहली उड़ान है ,,,
और शायद अंतिम भी ,,
क्यों की यही तो इति है ,,,
और अति भी ,,,
भ्रम सारे हो जाते है विन्यासित ,,,
छोड़ कर अस्पस्टता का दामन ,,,
मन तीव्र पीड़ा से निकल
खुद ढूंडने लगता है अपने लक्ष्य को ,,
जो की है निश्चय ही संतुस्टी ,,,
यही तो है मिलन की इति भी ,,,
ओ असीम नियन्ता ,,,
और तुझे जानने का कारक,,,
और कारण भी
4 comments:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
बेहद खूबसूरत व उम्दा अभिव्यक्ति ।
Waah !!! Atisundar !!!
Jiase sundar bhaav ,waisi hi sundar abhivyakti !!!
Man mugdh karti apratim rachna...anupam chintan !!!
शब्दों और भावनाओं दोनों में पारंगत...बेहतरीन भाई...सुंदर भाव...बस ऐसे ही इस संसार को नई-नई उड़ान देते रहिए जो अनंत की ओर जाए....
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