सोचता हूँ क्या लिखूं .
वतन की वाह में ,,
वतन की वाह में ..
वतन की आह में ..
ऊँची कोठिया लिखूं ,,
या बिकती बेटियाँ लिखूं ,,
मनती पार्टिया लिखूं ,,
या सूखी रोटियाँ लिखूं ,,
उनकी धायिया लिखूं ,,
या माँ की झायिया लिखूं,,
खेत में पड़ी हुई खाईयाँ लिखूं ,,
या बैल संग जुत रही विवायिया लिखूं ,,
किसान की दशा लिखूं ,,
या देश की मनोदशा लिखूं ,,
प्रगति की कथा लिखूं ,,
या दुर्गति की व्यथा लिखूं ,,,
सोचता हूँ क्या लिखूं ,,
वतन की वाह में ,,
वतन की वाह में ,,
वतन की आह में ,,,
उचायियों की होड़ लिखूं ,,
या पश्चिमी अंधी दौड़ लिखूं ,,
वोट की दुकान लिखूं ,,
या जलते मकान लिखूं ,,
उनकी झूठी शान लिखूं ,,
या इन की छिनती मुस्कान लिखूं ,,
चाहो कन्यादान लिखूं ,,,
दहेज़ का विधान लिखूं ,,
जलती बेटियाँ लिखूं ,,
या फिर उड़ती पेटियाँ लिखूं ,,
उनकी तबाहियाँ लिखूं ,,
या इनकी वाह वाहिया लिखूं ,,
और क्या लिखूं ,,
पतन की राह में ,,,
सोचता हूँ क्या लिखूं ,,
वतन की वाह में ,,
वतन की वाह में ,,
वतन की आह में ,,,,
वतन की वाह में ,,
वतन की वाह में ..
वतन की आह में ..
ऊँची कोठिया लिखूं ,,
या बिकती बेटियाँ लिखूं ,,
मनती पार्टिया लिखूं ,,
या सूखी रोटियाँ लिखूं ,,
उनकी धायिया लिखूं ,,
या माँ की झायिया लिखूं,,
खेत में पड़ी हुई खाईयाँ लिखूं ,,
या बैल संग जुत रही विवायिया लिखूं ,,
किसान की दशा लिखूं ,,
या देश की मनोदशा लिखूं ,,
प्रगति की कथा लिखूं ,,
या दुर्गति की व्यथा लिखूं ,,,
सोचता हूँ क्या लिखूं ,,
वतन की वाह में ,,
वतन की वाह में ,,
वतन की आह में ,,,
उचायियों की होड़ लिखूं ,,
या पश्चिमी अंधी दौड़ लिखूं ,,
वोट की दुकान लिखूं ,,
या जलते मकान लिखूं ,,
उनकी झूठी शान लिखूं ,,
या इन की छिनती मुस्कान लिखूं ,,
चाहो कन्यादान लिखूं ,,,
दहेज़ का विधान लिखूं ,,
जलती बेटियाँ लिखूं ,,
या फिर उड़ती पेटियाँ लिखूं ,,
उनकी तबाहियाँ लिखूं ,,
या इनकी वाह वाहिया लिखूं ,,
और क्या लिखूं ,,
पतन की राह में ,,,
सोचता हूँ क्या लिखूं ,,
वतन की वाह में ,,
वतन की वाह में ,,
वतन की आह में ,,,,
8 comments:
प्रवीन बहुत ही सुन्दर कविता है इस कविता मे समाज मे व्याप्त विसंगतियों के प्रति कवि के मन मे जो करुणा का भाव है वही उसकी राष्ट्र के प्रति संवेदना को प्रकट करता है और मै जानती हूँ कि तुम देश के लिये कुछ कर गुज़र्ने की तमन्ना रखते हो अपने इस भाव को ऐसे ही बनाये रखना इस उम्र तक बहुदा् लोगों मे ये भावना रहती है लेकिन इस के बाद वो अपनी ज़िन्दगी मै ऐसे उलझ जाता है कि देश की प्राथ्मिकतायें उस्के लिये गौण हो जाती हैं फिर भी अगर वो जरा सी कोशिश करता रहे और खुद एक अच्छा इन्सान बना रहे तो भे ये राष्ट्र-भक्ति है बहुत सुन्दर कविता है बधाई लिखते रहा करो आशीर्वाद्
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति। आज की दशा का बहुत ही सुंदर चित्रण। लिखते रहिए। साधुवाद।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
praveen ji
aapki lekhni se nikali is shashakt rachana ke tareef ke liye mere pass shabd nahi hai ji ...सोचता हूँ क्या लिखूं ..... is kavita me kavi man ki peeda vyakt ho rahi hai aur bahut hi acchi abhivyakti ji ... praveen you are just a great poet...
kudos..
vijay
NIRMALA KAPILA JI ki baato se mai bhi sahamat hu ...........atisundar.................natmastak
जो लिखो सदा लिखो
हरा लिखो लाल लिखो
पर इसी तरह कमाल लिखो
समस्याओं का जाल लिखो
लिखो लिखो खूब लिखो
अच्छा लिखो
भला लिखो
सुन्दर कविता है
aap ki ye rachna sab par bhari padne wali hai
aap ke chintan ka roop saaf dikhai deta hai or hamari dohari zindagi ki tasvir bhi pradershit hoti hai
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