Monday, 22 June 2009

माटी के गद्दारों को,,(कविता)


कल रात स्वपन में मैंने देखा,,
भारत के सरदारों को .
माटी के गद्दारों को ,,
चूहों के परिवारों को ,,
इस धरती माँ के भारो को ,,
इन संसद के बेकारो को ,,
भारत की खूब गरीबी देखी ,,
फिर देखा इन के श्रंगारो को ,,
नंगे पद चलते भारत देखा ,,,
फिर देखा इनकी महंगी कारो को..
हाथ फैलाये बच्चे देखे ,,,
फिर देखा इनके नारों को ,,
कमर तोड़ती महगाई में ,,
घुट घुट जीते परिवारों को ,,
धू धू कर जलती बस्ती देखी,,
फिर भासड करते मक्कारों को ,,
कल रत स्वपन में मैं ने देखा ,,
माटी के गद्दारों को ,,
भारत के सरदारों को ,,
इस धरती के भारो को ,,
क्या क्या देखा मैंने ,,
सत्ता लोलुप सियारों को ,,
खुद का सौदा करते इन बेचारो को ,,
रास्त्र प्रेम में मरते सैनिक देखे ..
फिर कफ़न बेचते इन मारो को ,,
वोटो की खातिर , नोटों से खातिर ,,
करते वीभत्स नजारों को,,,
अब और नहीं कुछ रहा देखना,,
जब देखा भीषण नर संहारों को ,,
कल रात स्वपन में मैंने देखा,,
माटी के गद्दारों को,,
भारत के सरदारों को ,,इन धरती माँ. के भारो को,,

8 comments:

vijay kumar sappatti said...

प्रवीण भाई .

आपने आज के हमारे देश की परिस्थिति को अपने शशक्त शब्दों में उभार दिया है . देश अब एक banana country बन गया है .. यहाँ किसी को किसी से कुछ लेना देना नहीं है ,सिर्फ अपना स्वार्थ परम बना हुआ है .....ये सच है की ये स्वपन नहीं एक जीती जागती सच्चाई है .. हम चारो ओर से इस भेडियों से घिरे हुए है ......मुझे दुःख होता है की आज भगत सिंग और आज़ाद और अन्य शहीदों की आत्मा कितनी कराहती होंगी ...इस देश के लिए उन्होंने अपनी जान दी ???

मैं और क्या कहूँ ...बस आपकी शशक्त अभिव्यक्ति पर निशब्द हूँ ... और ये उम्मीद करता हूँ की ये स्वपन हमारे बच्चे न देखे....

इस कविता के लिए आभार ...

आपका
विजय

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब। चलिए मैं भी कुछ जोड़ दूँ-

फिर बैठे कुर्सी पर देखा।
नेता के रिश्तेदारों को।।

भीवत्श - वीभत्स, भीसड - भीषण, संघारो - संहारों को सुधार लें।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ओम आर्य said...

bahut hi badhiya bhawa bahut hi sundar dang se rakha hai desh ke halat ko........ek sarahaniy prayas kari hai .........ham duaa karate hai ki aapki yah kawita un logo tak pahuche

Unknown said...

bhai praveenji,
badi maarak kshmtaa rakhte ho bandhu !
ek ek shabd mano sakar kar diya ...sakshaat khadaa kar diya...
MERI OR SE LAKH LAKH BADHAAI !

Udan Tashtari said...

बड़ा खतरनाक सपना रहा..प्रवाह अच्छा है.

संगीता पुरी said...

कई दिनों से आपकी कविताएं पढ रही हूं .. गजब लिखते हैं आप .. जितने अच्‍छे भाव हैं उतना ही सुंदर प्रस्‍तुतीकरण ।

निर्मला कपिला said...

pप्रवीनजी आपके ब्लोग को देख कर आप्से ऐसी कविता की ही आशा थी मै कल भी इसे पढा थ मगर मुझे टिप्पणी के लिये आईक्न नहिण मिला था उसे जरा बोल्द करें इस उम्र मे नज़र तेज़ नहीं होती ना कविता के भाव ने दिल छू लिया है अगर आज हर युवा के मन मे ऐसे हे देश के प्रति सरोकार हो तो शाय्द इस दे्श का कुछ भला हो जाये अपना ये प्रयास जारी रखें बहुत ही सर्थक और सटीक रचना के लिये बधाई

आशेन्द्र सिंह said...

मित्र, 22 जून को आपके ब्लॉग पर पोस्ट की गई आपकी कविता "माटी के गद्दारों को" पढ़ी देश की वर्तमान स्थिति और आम आदमी के प्रति आपका आक्रोश स्वाभाविक है. कविता में यह आक्रोश परिलक्षित भी हो रहा है. इसी तरह लिखते रहिएगा. शुभकामनाएं