Wednesday 27 January 2010

अनुभूति


जब मन अनुभूत करता है ,,,
अनावश्यक की जिज्ञासा ,,,
और प्रयाश करता है ढूडने का,,,
अनुत्तरित से कुछ प्रश्नों का उत्तर ,,,
तब संवेदनाये जैसे मर सी जाती है,,
तब रह जाती है केवल और केवल,,,
पिपाशा
अनुपलब्धता को उपलब्ध करने की ,,
अनुपस्थित को उपस्थित करने की ,,,
अप्राप्त को प्राप्त करने की ,,,,
सुप्त इच्छाये भी तब होने लगती है ,,,
जाग्रत ,,,
या यूँ कहे इच्छाओं का साम्राज्य ,,,
एक और उपलब्धि की चाहत ,,,
बढा देती है और उत्कंठा ,,,
बढा देती है और कुंठा ,,,
तब एक छत्र राज्य होता है ,,,
निष्क्रियता का ,,,
बढती जाती है तुझसे दूरी ,,,
कदम दर कदम ,,,,,
हर कदम अन्मिलन की ओर बढ़ता जाता हूँ
क्यों की वही तो है इच्छाओं की इति ,,,
और पतन की इति भी ,,,,

Wednesday 20 January 2010

अनन्त लक्ष्य की उड़ान ,,,


जब संपुष्टता के कुछ पंख ,,,
निर्भीकता के पथ पर ,,,
भरते है अनन्त लक्ष्य की उड़ान ,,,
अदम्य जीवन का सच ,,
मानो होने लगता है मुखरित ,,
यही तो पहली उड़ान है ,,,
और शायद अंतिम भी ,,
क्यों की यही तो इति है ,,,
और अति भी ,,,
भ्रम सारे हो जाते है विन्यासित ,,,
छोड़ कर अस्पस्टता का दामन ,,,
मन तीव्र पीड़ा से निकल
खुद ढूंडने लगता है अपने लक्ष्य को ,,
जो की है निश्चय ही संतुस्टी ,,,
यही तो है मिलन की इति भी ,,,
असीम नियन्ता ,,,
और तुझे जानने का कारक,,,
और कारण भी


Tuesday 12 January 2010

उदबोधन


मन के उद्देव्ग जब करते है तलाश ,,३
संभाविता की ,,,,,,,,,,,,,
जब शुरू होती है ,,,
आत्म विश्लेषण की प्रव्रति,,,,
जब निरन्तर होने लगता है ,,,
निर्धारण ,,,,,,,,,,,,
पूर्ण और अपूर्ण का ,,,,,
गेय और अज्ञेय का ,,,
गम्य और अगम्य का ,,,
प्राप्य और अप्राप्य का ,,,,
सच में तभी होता है,,,,
उत्क्रस्टता की ओर गमन ,,,
निश्चल उत्क्रस्टता ,,,
खुद ही होने लगती है अर्जित ,,,
छलता और विचलता होती है पराजित ,,
निश्चित ही प्रस्फुटित होने लगता है ..
कुछ उदबोधन,,,,,
अंतरात्मा की विहंगमता से ,,,,,,,

प्रकट होने लगती है समता विषमता से ,,,,
तब मन निर्भय हो मान खोकर ,,,
हो जाता है अहल्दित ,,,
सच में सत जीवन की यही शुरुआत है,,,,

Wednesday 6 January 2010

कुछ स्याह ध्वनिया


अनमने मन से मै ,आत्मसंतुष्टि के द्वारा ,,
अविलम्बित जीवन के, अनुत्तरित से प्रश्नों को
अचंभित हो कर देख रहा था ,,
कर रहा था पूर्वालोकन ,,
आलौकिक और आकस्मिक ध्वनियों का ,,
जो प्रतिध्वनित हो रही थी,,
मेरी अंतरात्मा के भीतरी प्र्ष्ठो से ,,
कुछ स्याह ध्वनिया लग रही थी ,,
प्रश्न्योचित उत्तरों सी ,,,
मै विस्मित था ,,,
निरन्तर क्षीण होती इच्छाशक्ति ....
खो रही थी संबल ,,,
फिर भी मै मौन एवं सचेत था ,,,
ओढ़ रखी थी मैंने गम्भीरता ,
छदम सहनशीलता का आलम्बन लेकर,,,,
असहनीय हो रही उत्कंठा और जुगुप्सा ,
आत्मकेंद्रित हो कर,,,
दिखाना चाहती थी अपनी उपस्थिति का कारण ,,
पर मन मौन ही ,,
बुन रहा था निर्लिप्तता का अंत हीन आवरण ,,,
शायद कुछ अस्पस्ट ही सही ,,,
घट तो रहा था ,,
तभी तो मै मौन और सम्बल हीन होकर भी ,,,
मह्शूश कर रहा हूँ आलम्बन ,,,
हे दया निधे सारी तेरी ही कृपा है,,,,

Friday 1 January 2010

और बरस एक बीत चला ,,,


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और बरस एक बीत चला ,,,

और बरस एक बीत चला ,,,
सांसो का संगीत चला ,,,
पिछली सब धूमिल यादे,,,
अंकित करता अंकित करता,,,
अपनों का ये मीत चला ,,,
और बरस एक बीत चला ,,,
सब मीठी वा तीखी यादे ,,,
कुछ आधे कुछ पूरे वादे ,,,
आगोसो में अपने लेके ,,,
जीवन का ये मीत चला ,,,
और बरस एक बीत चला ,,,
कर धैर्य परिक्षा जीवन की ,,,
ले अग्नि परिक्षा इस तन की ,,,
साहस की एक सीख सिखा के ,,,
अपनों से हो भय भीत चला ,,,
और बरस एक बीत चला ,,,
रखूगा तुमको यादो के ,,,
सुंदर से एक झरोखे में ,,,
रातो का सपना जैसे,,,
अपनों का ये मीत चला ,,,
और बरस एक बीत चला,,,
आने बाला कल होगा,
यादो का सगूफा जैसे ,,,
तुम अंतस के चेरे थे ,,,
भूलूंगा तुमको कैसे ,,,
भरती आँखों का गीत चला ,,,
और बरस एक बीत चला ,,,

प्रवीण पथिक