Saturday 20 April 2013

मैंने खाना सीख लिया है,,


अब ना और सताओ  मुझको ,
मैंने  मुस्काना सीख लिया है ,,
गर दुःख आये है  आने दो ,
मैंने इनको टरकाना सीख लिया है ,,
मांगो दिल हो जितना मांगो ,
अब मैंने बहाना सीख लिया है,,
मत चौराहों का खौफ दिखाओ ,
मैंने आना जाना सीख लिया है,,
वो मौतों के सौदागर है तो क्या,
मैंने  मर जाना सीख लिया है,,
तुम भी आओ झपटो न संकोच करों,
मैंने हर रोज  लुटाना सीख लिया है,,
जरा खुल कर घावो पर घाव लगाओ ,
मैंने  घाव सुखाना सीख लिया है ,,
न महंगाई कम है न जिम्मेदारी ,
बस बोझ उठाना सीख लिया है ,,
ना आंशू कम है न गम ख़त्म हुये ,
बस दिल बहलाना सीख लिया है ,,
माँ अब तुम चाहो तो मर जाओ ,
अब मैंने खाना सीख लिया है ,,

एक उपेक्षित आदमी है

विचार शुन्य चमकती आँखे .
और भाव शून्य चेहरा ,,
मौन होते हुए भी कर रहा था ,,
व्याखित उसकी मनोदशा को ,,
चेहरे पर पड़ी आड़ी तिरछी  रेखाये.
प्रदर्शित कर रही थी सरल से गम्भीरत्व को .
प्रकट और अप्रकट शब्दों के मेघ ,
उजागर कर रहे थे जीवन की  वीभत्सतता को
और जीवन से उसके प्रतारण को ,,
सब संवेदनाये शून्य सी हो जाती थी ,
सब भाव लुप्त से हो जाते थे ..
जव  वो करता था प्रयास ,,
जीवन पे चलने और उसके ,
नियमो के प्रतिपालन का ,,
क्योकि उसका हर प्रयाश ,,
उत्पन्न करता है और भी संदेह को ..
क्योकि उसकी क्षमता उसकी कार्यकुशलता ..
उसके सपनो की उपयोगता ,,
निर्थक ही है उसकी सामाजिक स्थिति के सामने ..
क्योकि वो
एक उपेक्षित आदमी है