अहो अभावता तुझको ...
कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,,
तू मेरे पहलुओ का उच्चारण ,,,,
तुझको कैसे मै वंदन दूँ ,,,,,,
जग दुनिया जंगम क्या है ,,,,
ये तेरे चितावन से चेता मै ,,,
कनक भवन या श्रमिक कुटीर ,,
ये तेरे दिखावन से चेता मै ,,,,
ओ स्रष्टि विहरणी ,,,,,
ओ स्रष्टि संचालक ,,,,,,
तुम निर्धन की गरिमा हो ,,,,
पर तेरे दामन की निर्मल छाया से ,,,,,
जाने सब क्यूँ घवराते है ....
अंक लगा स्नेह लुटाती ,,,
उनको जो सारा अपना आते खो ,,,
समर्ध सुधा के पनघट से ,,,,,
तू नाता तोड़े बैठी है ,,,,
सम्राज्य जहां है वो उसका है ,,,,,
तू रिश्ता छोड़े बैठी है ,,,,,,
मै सच कहता हूँ जो हूँ ,,,,
बस तेरी द्र्ड़ता के कारण हूँ ,,,,
मै समग्र विचारों का एक पुलंदा ,,,,,
बस तेरी द्रवता के कारण हूँ ,,,,,,
फिर तेरी करुणा से पाए,,,,,
इस क्रन्दन से तुझको मै ,,,,,
कैसे क्रन्दन दूँ ,,,
अहो अभावता तुझको ...
कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,,
कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,,
तू मेरे पहलुओ का उच्चारण ,,,,
तुझको कैसे मै वंदन दूँ ,,,,,,
जग दुनिया जंगम क्या है ,,,,
ये तेरे चितावन से चेता मै ,,,
कनक भवन या श्रमिक कुटीर ,,
ये तेरे दिखावन से चेता मै ,,,,
ओ स्रष्टि विहरणी ,,,,,
ओ स्रष्टि संचालक ,,,,,,
तुम निर्धन की गरिमा हो ,,,,
पर तेरे दामन की निर्मल छाया से ,,,,,
जाने सब क्यूँ घवराते है ....
अंक लगा स्नेह लुटाती ,,,
उनको जो सारा अपना आते खो ,,,
समर्ध सुधा के पनघट से ,,,,,
तू नाता तोड़े बैठी है ,,,,
सम्राज्य जहां है वो उसका है ,,,,,
तू रिश्ता छोड़े बैठी है ,,,,,,
मै सच कहता हूँ जो हूँ ,,,,
बस तेरी द्र्ड़ता के कारण हूँ ,,,,
मै समग्र विचारों का एक पुलंदा ,,,,,
बस तेरी द्रवता के कारण हूँ ,,,,,,
फिर तेरी करुणा से पाए,,,,,
इस क्रन्दन से तुझको मै ,,,,,
कैसे क्रन्दन दूँ ,,,
अहो अभावता तुझको ...
कैसे मै अभिनन्दन दूँ ,,,,