Sunday 28 March 2010

हुआ हूँ फिर उपस्थित तेरे सम्मुख ,,,, ओ दयानिधे(प्रवीण पथिक) ,,,,

अतृप्त इच्छाओ की ,,,
अधबनी नौका लेकर ,,,
हुआ हूँ फिर उपस्थित तेरे सम्मुख ,,,,
ओ दयानिधे ,,,,
टकटकी लगा रखी है ,,,,
तेरी हर अनुग्रही क्रिया पर ,,,,
की काश कोई द्रष्टि इधर भी हो ,,,,
ओ समग्र नियन्ता ,,,,
मेरी इस मौनाकुल पीड़ा को ,,
तुम समझ सकते हो ,,,,
क्यों की तुम हो दिव्य द्रष्टा ,,,
हर्दय के मंथन से निकली हुई ,,,
अतृप्त इच्छाओ की तीव्र वेदनाये ,,,
बुलबुले सा एकत्र हो कर,,,
बना रही है एक अभेद पर्त,,,
अज्ञान और अनिच्छा की ,,,
सम्मिलन दूर दिख रहा है ,,,,
ज्ञान कुंद और सुप्त सा है ,,,,
फिर भी मै आशान्वित हूँ ,,,
तेरी आभाषी प्रवर्ती को लेकर,,,
तेरे साथ काल्पनिक सम्मिलन को लेकर ,,,
आनंददायक मिलन को लेकर ,,,
आत्मा की अत्रप्त्ता बढती ही जा रही है ,,,,
सजगता और स्वीकार्यता के छल ,,,
अब नहीं सहन होते ,,,
समग्र बंधन अब सिथिल है ,,,
नहीं झेल पाते मिलन की उत्कंठा के उफान को ,,,
बस अब और नहीं हे प्रिये बंधन खोल ,,,
आलिंगन में ले लो

Tuesday 23 March 2010

एक अपील मासूमो के लिए

दोस्तो ,

ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है तो सोचा आप सबसे ही अपील करनी चाहिए एक ऐसे कार्य में आप सबके सहयोग की आवश्यकता है जिसमें आप का तो कुछ नहीं जायेगा मगर कुछ मासूमों की ज़िन्दगी सँवर जाएगी . मैं एक ngo से जुडा हुआ हूँ जो गरीब बच्चों की मदद करती है अगर आप सब भी उसमें सहयोग दें तो आप सबका आभारी होंगा . आपको सिर्फ इतना करना है इस बार अपने बच्चों की पुरानी किताबें आप किसी को नहीं देना बल्कि उन पुस्तकों को गरीब बच्चों के लिए दान दे देना मैं अपना फ़ोन नंबर आपको देता हूँ जिससे आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं ............इससे उन मासूमों का जीवन संवर जायेगा और आपका सहयोग भी मिल जायेगा.
मेरा नंबर है -------
9971969084

Friday 19 March 2010

वो भारत का देव मुझे ताके जाता था ,,,,(प्रवीण पथिक)

वो भारत का देव मुझे ताके जाता था ,,,,
करूणा से लथ पथ अंतस में झांके जाता था ,,,,
कंधो पर पिचकारी के थैले टंगे ,,,,,
हाथो में धूसर रंग लिए ,,,,,
वन प्रतिमा सा अडिग खड़ा है ,,,,,
मानो मौन आवाहन किये ,,,,,
वो कान्ति मुझे अब झुलसाती है,,,,
जो उसके चेहरे की थाती है ,,,,
दर्ग अपलक देख रहे थे आने जाने वालो को ,,,,
उनमे फैली नीरवता हर पल रूदन सुना जाती ,,,,
मुट्ठी में भीचे पैसो की खन खनभूंखे पेट दिखा जाती ,,,,,
वो बड़ी संकुचित धीमी बोली से चिल्लाता था ,,,,
महगाई के अट्टहास में मौन पुनः हो जाता था ,,,,,
मुट्ठी के सिक्को को गिनता ,,,,
गिनता फिर रंगों के पैमानों को ,,,,
कभी फटी कमीज के धागों में उलझाता ऊँगली ,,,,
मानो अपने व्यवधानों की क्षमता आँक रहा हो ,,,,,
फिर झट से धागों को सयंत करता ,,,,,
ये देखो वो देखो गाडी के पीछे भाग रहा ,,,,,
ठिठक गया अब मौन हुआ ,,,,,,
फिर सूखी हंसी फैला देता ,,,
यह लगे या वहा लगे ,,,,,,
पर करुणा तीर चला देता ,,,,
हार मिली तो फिर सयंत हो आँखों से अंशु पोछ दिए ,,,,
याद उसे आते हर पल घर भूंखे पेट लिए ,,,,,
फिर उठा कर्म का झोला वो भागे जाता था ,,,,,
वो भारत का देव मुझे ताके जाता था ,,,,


Wednesday 17 March 2010

हाय लुटेरे कर्णा धार कहो तो कौन बचाए देश ,,(प्रवीण पथिक,)


हाय लुटेरे कर्णा धार कहो तो कौन बचाए देश ,,,
जन सेवक का ऐसा सत्कार कहो तो कौन बचाए देश,,,,,

Thursday 11 March 2010

कर्जे में करती हलाल होली ,,,( प्रवीण पथिक, )

मेरी मुस्कान होली , तेरी शान होली ,,,,
मीठे पकवान होली ,, ऊँची दुकान होली,,,,
नीली होली ,काली होली, पीली होली,,,,
लाल और रंगों रंगान होली ,,,,,
पर कुछ की सफ़ेद और बेजान होली ,,,
उजडती दुकान होली सूखते खलिहान होली ,,
भूखी जुबान होली ,,, झूठी शान होली ,,,
तडपती पहिचान होली ,, दिखावटी आन होली ,,,
रोती मुस्कान होली ,,चीखती जबान होली ....
फिर भी रंगों से सराबोर होली,,,
खिलखिलाती बिभोर होली ,,,,,,
इधर भी उधर भी चारो ओर होली ,,,
जीने को मुहाल होली ,, भूंख से बेहाल होली ,,,
चलती कुदाल होली ,,,खिचती खाल होली ,,,,
पसीने से माला माल होली ,,, सूनी और कंगाल होली ,,,
तिरछी मोटी रोटी सस्ती दाल होली ,,,
कर्जे में करती हलाल होली ,,,
तेरी होली मेरी होली ,,,
अपनी अपनी सभाल होली ,,
फाकामस्ती की अपनी मिशाल होली ,,,
कितनी है कमाल होली ,,,
फिर भी कहूँगा महान होली ,,,
क्यों की मेरी मजबूरी की मुस्कान होली ,,
और तेरी झूठी शान होली







Friday 5 March 2010

नपुंसक सरकार भरोसा अन्धा चहिए,,,(प्रवीण पथिक, )

नपुंसक सरकार भरोसा अन्धा चहिए,,,
लोकतंत्र बीमार भरोसा अन्धा चहिए,,,
महँगाई की मार भरोसा अन्धा चहिए,,,
जनता है लाचार भरोसा अन्धा चहिए,,,
भूखा है घर बार भरोसा अन्धा चहिए,,,
कुदरत की भी मार भरोसा अन्धा चहिए,,,
सोता है दरबार भरोसा अन्धा चहिए,,,
वादे है बेकार भरोसा अन्धा चहिए,,,
पिसते है बेजार भरोसा अन्धा चहिए,,,
होगा कभी सुधार भरोसा अन्धा चहिए,,,
लूटने के कई प्रकार भरोसा अन्धा चहिए,,,
बिकता है बाजार भरोसा अन्धा चहिए,,,
चुप्पी साधे अखबार भरोसा अन्धा चहिए,,,
मिलते नित नए प्रहार भरोसा अन्धा चहिए,,,
कोई हटा देगा भर भरोसा अन्धा चहिए,,,
होती हर दिन हार भरोसा अन्धा चहिए,,,
पूंजी शिक्षा का आधार भरोसा अन्धा चहिए,,,
चारो ओर विकार भरोसा अन्धा चहिए,,,
आएगी कभी बहार भरोसा अन्धा चहिए,,,
समता है बीमार भरोसा अन्धा चहिए,,,
नेता दंगो के सरदार भरोसा अन्धा चहिए,,,
होगाकभी उपचार भरोसा अन्धा चहिए,,,
होगा सुखी संसार भरोसा अन्धा चहिए,,,
नपुंसक सरकार भरोसा अन्धा चहिए,,,