Tuesday 16 February 2010

हिन्दू नमाजे पढ़े और मुस्लिम जय बोल दे ,,,(प्रवीण पथिक ,)

आओ हम मिल मिला कर सब संताप हर दे ,,,,
बुझ चुकी समता मशालो में फिर ताप भर दे ,,,
राष्ट्र की गरिमा पुनः उत्थान की सीढ़ी चढ़े ,,,
रहमान के रहबर बढे और राम की पीढ़ी बढे ,,
समता का ऐसा रंग हम जन जन में घोल दे,,
हिन्दू नमाजे पढ़े और मुस्लिम जय बोल दे ,,,
धर्म की लकीरे मिटे और जाति बन्धन खोल दे,,
हम वेद मंत्रो की ध्वनी में भी राष्ट्र वाद भर दे ,,,
आओ हम मिल मिला कर सब संताप हर दे ,,,,
बुझ चुकी समता मशालो में फिर ताप भर दे ,,,
शोषितों के हाथ में हो सामराज्य की डोरिया,,,
कोई भूख से व्याकुल न हो, ना कोई भरे तिजोरिया ,,,
सम्वेदनाए ऐसी जुडी हो माँ भारती की शान से ,,,
गफलत में भी कोई अनादर न करे जुबान से ,,,
मिट चुकी जो खून की गर्मी यहाँ से वहा तक ,,,
नस्ले शोधित करे फिर नया शुधार कर दे ,,,
आओ हम मिल मिला कर सब संताप हर दे ,,,,
बुझ चुकी समता मशालो में फिर ताप भर दे ,,,
हो अमन का माहौल सब राज्य मिल कर बढे ,,,
गुजरात हो महाराष्ट्र हो या बिहार सब साथ ही चढ़े ,,,
मिटा कर क्षेत्र के बन्धन और बोली की कमजोरिया..
हम राष्ट्र वादिता की भावना प्रबल कर दे
बाँध कर बिखरी हुयी भुजाओं को सबल कर दे ,,,
फूंक कर सम्मान की चिंगारी ज्वाला प्रबल कर दे ,,
आओ हम मिल मिला कर सब संताप हर दे ,,,,
बुझ चुकी समता मशालो में फिर ताप भर दे ,,,
हम शांति के रक्षक सही पर नपुंसक है नहीं ,,,,
जो काल बन कर टूटते थे रणजीत टीपू है वही ,,,,
मन की कोमल बहुत है मगर पामर है नहीं
हम समसीर है तलवार है कायर है नहीं
जो तूती हमारी बोलती थी समग्र संसार में,,,
फिर उठे मिल कर वही आधार कर दे
आओ हम मिल मिला कर सब संताप हर दे ,,,,
बुझ चुकी समता मशालो में फिर ताप भर दे ,,

8 comments:

Yashwant Mehta "Yash" said...

ओजस्वी कविता......इस सन्देश का फ़ैलना जरुरी है

दिगम्बर नासवा said...

आमीन .......... काश ऐसा हो सके ... बहुत ही आशा और जोश से भरी रचना ...

रंजन said...

jay ho!!

Mithilesh dubey said...

क्या बात है प्रवीण भाई , निश्बद कर दिया है आपने। कविता पढ़ते-पढ़ते जैसे पूरी शरीर में एक अजीब सी रवानगी भर गयी । काश की ऐसा होता तो कितना अच्छा होता , इस लाजवाब व उम्दा कविता के लिए बधाई स्वीकांर करे ।

vandana gupta said...

praveen ji

jaisa ki mithilesh ji ne kaha main khud nishabd ho gayi hun.......aaj aap jaise kaviyon ki hi aavashyakta hai jo jan jagran kar sakein , logon ki soyi huyi bhavnaon ko jaga sakein............aabhar.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जय.....

rashmi ravija said...

बहुत ही बढ़िया सन्देश देती...ओजस्वी कविता....सबलोग ये प्रण ले लेँ...संताप हरने का, फिर रामराज्य आते देर नहीं लगेगी....साधुवाद,इतनी अच्छी सोच को..

M VERMA said...

आओ हम मिल मिला कर सब संताप हर दे ,,,,
बुझ चुकी समता मशालो में फिर ताप भर दे ,,
बहुत सुन्दर अलख जगाती कविता.
आपके स्वर राष्ट्रीय भावनाओ से ओत प्रोत हैं