मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
जब दायी ने अफ़सोस के साथ मेरे जन्म कि सूचना माँ को दी ,,
और बधायी भी नही माँगी ,,,,
माँ ने अश्रु भरी आँखों से दीवाल की तरफ देखा ,,
और सिसकी ली ,,
दादी ने मुँह सिकोड़ा ,,,
और पिता हतासा भरे कदमो से घर से बाहर निकल गए ,,
मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
जिस दिन घर से बाहर पहला कदम मैने रखा और ,,
तुम्हारी तीखी चुभती नजरो ने ,,
मेरे जिस्म को फाड़ कर कुछ टटोला ,,,
मैने खुद को नंगा और तार तार मह्सूस किया ..
मेरी मौत का पहला प्रयास तुम्हारा ही था ...
जब गली से निकलते हुये तुमने भद्दी फ़ब्तिया कसी ..
और बजार मे कन्धे से कन्धा रगड़ते निकले ,,,
मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
जब माँ ने खुल कर हँसने से रोका ,,,
जब दादी ने खुल कर चलने से रोका ,,,
पिता ने बड़े भाई कि उँगली थमा दी ,,
और समाज ने औरत कह कर पाबंदियो की तख्ती लगा दी ,,,
मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
जब तुमने पीडिता कह कर पहले .
मेरे नाम को मारा ,,
संवेदनाओं ,भावनाओं आशाओ , अपेक्षाओं के
ज्वार ने मह्सूस कराया और भी बेचारा ,,,,,
आज तो छोड़ा है बस निर्जीव शरीर को ,,,, वर्ना
मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
दादी ने मुँह सिकोड़ा ,,,
और पिता हतासा भरे कदमो से घर से बाहर निकल गए ,,
मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
जिस दिन घर से बाहर पहला कदम मैने रखा और ,,
तुम्हारी तीखी चुभती नजरो ने ,,
मेरे जिस्म को फाड़ कर कुछ टटोला ,,,
मैने खुद को नंगा और तार तार मह्सूस किया ..
मेरी मौत का पहला प्रयास तुम्हारा ही था ...
जब गली से निकलते हुये तुमने भद्दी फ़ब्तिया कसी ..
और बजार मे कन्धे से कन्धा रगड़ते निकले ,,,
मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
जब माँ ने खुल कर हँसने से रोका ,,,
जब दादी ने खुल कर चलने से रोका ,,,
पिता ने बड़े भाई कि उँगली थमा दी ,,
और समाज ने औरत कह कर पाबंदियो की तख्ती लगा दी ,,,
मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
जब तुमने पीडिता कह कर पहले .
मेरे नाम को मारा ,,
संवेदनाओं ,भावनाओं आशाओ , अपेक्षाओं के
ज्वार ने मह्सूस कराया और भी बेचारा ,,,,,
आज तो छोड़ा है बस निर्जीव शरीर को ,,,, वर्ना
मर तो मै उस दिन ही गयी थी ,
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