Friday 24 July 2009

कभी याद आऊ तो केवल दो आँशू टपका देना ,,,(कविता)


माँ अगर चाहती मेरी शादी हो ,,,
रण भूमि की मिटटी से,,
सुन्दर सा घर बनबा देना ,,,
हर कोने पर अरी मुंडो की,,
मालाये लटक रही हो,,
आँगन में संग्रामो की ,,
ज्वालाये धधक रही हो ,,,
गीतों की लय पे माँ तुम ,,
रण भेरी बजवा देना,,,
हर कोने में वीर लड़ाके हो,,
घर को तुम सजवा देना ,,,
मरू भूमि की वेदी हो ,,
बलिदानों की अहुतिया,,,,
बलि वेदी दुल्हन हो और हो,,
बलिदानी चोला ,
श्रंगारी कपड़ो की नहीं जरुरत ,,,
एक कफ़न तुम मँगवा देना ,,,,
माँ सीमा पर मरने वाले सारे मेरे,,
बाराती हो ...
रास्ट्र भूमि की बलिवेदी पर बलि दे जो ,
सो मेरे साथी हो ,,
माँ मेरी अगवानी वही करे,,,,
जिसके बोलो में हो धरती का बोला ,,,
सम्मानों को वही बढे,,,
जिसने पहना हो वीरो का चोला,,,
माँ पंडित की नहीं जरुरत ,,,
कोई वीर बुला देना,,,
शादी मंत्रो की बोली में माँ,,,
जन गण मन तुम गा देना ,,,,
सात पदों की सातो इच्छा ,,
एक ही में ले लूँगा ,,,
मात्र भूमि पे हो निछावर ,,,
सौ सौ जन्म मैं दे दूंगा ,,,
हुंकारों की भाषा में ,,,
माँ शादी गीतों को गाना ,,,
ललकारो की भाषा में ही ,,,
थोरी सी लय लाना ,,,
माँ नहीं पालकी का लालच मुझको ,,,
अर्थी तुम मँगवा देना ,,,
हर कोने पर माँ वीरो को लगवा देना ,,,
चन्दन श्रंगारो का आलेप नहीं,,
थोरी मिटटी मलवा देना ,,,
माँ गंगा जल नहीं चाहिए ,,,
दो आंशू तुम ला देना ,,,
मुझको अग्नि वही लगाये ,,
जो वीरो की टोली से हो ,,,
अग्नि प्रज्वल्लित भी माँ केवल,,,
वीरो की गोली से हो,,,
म्रत्यु पाठ भी वही करे,,
जिसकी बोली में हुंकारे हो ,,,
म्रत्यु पाठ के गीतों में ,,,
माँ केवल ललकारे हो ,,,
नहीं प्रवाहित करना अस्थि को ,,
गंगा या यमुना जल में ,,,
वीर गुजरते हो जिस पथ से ,,,
बिखरा देना उस थल में ,,,
माँ कभी विलापो की बोली में ,,,
ना मुझको तुम ला देना ,,,,
कभी याद आऊ तो केवल ,,
दो आँशू टपका देना ,,,
माँ एक प्राथना और करूँगा ,,,
तेरा हर बेटा उन्मादी हो ,,,
रास्ट्र भूमि पर बलि बलि जाए ,,
ऐसी ही उसकी शादी हो ,,,
माँ अगर चाहती मेरी शादी हो ,,,,,

8 comments:

निर्मला कपिला said...

प्रवीण वीर रस मे दहकती सी सुन्दर रचना मे कवि के दिल मे देश के प्रति अपने उदगार प्रकट कर आन्दोलित कर जाती है दिन पर दिन तुम्हारी कलम प्रवाहमय होती जा रही है और तुम्हारा ये जोश बना रहे हर बार यही कहूँगी तुम्हारे पास शब्द भी हैं और जनून भी है इस लिये एक दिन जरूर् tumhaaraa naam hogaa duniyaa bhar me bahut bahut aasheervaad

अजय कुमार झा said...

प्रिय प्रवीण जी,
कारगिल दिवस के अवसर पर देशभक्ति के जज्बे से लबरेज कविता बहुत ही ओजपूर्ण लगी...बहुत बहुत शुभकामनायें..लेकिन शब्दों की शुद्धता पर ध्यान दें..तो कविता और भी सुन्दर बन पड़ेगी..
आपका मित्र और सखा

संगीता पुरी said...

अच्‍छी चलने लगी है कलम आपकी .. बहुत जोश है आपमें .. जो आपकी कविताओं में साफ परिलक्षित होता है .. ऐसा ही लिखते रहें .. अजय कु झा की बातों पर ध्‍यान दें .. शुभकामनाएं !!

श्यामल सुमन said...

इन पंक्तियों के माध्यम से कहूँ तो-

भारत है वीरों की धरती एक से एक नरेश।
मीरा तुलसी सूर कबीरा योगी और दरवेश।
अगर भावना ऐसी हो तो एक रहेगा देश
कागा ले जा यह संदेश। घर घर दे जा यह संदेश।।

अब कुछ सुधारात्मक बात- निम्न को ऐसा लिखें तो कैसा रहे-

आऊ - आऊँ, आंशू - आँसू, अरी - अरि, थोरी - थोड़ी, श्रंगारी - श्रृंगारी और भी कहीं कहीं।

शुभकामनाओं सहित

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ρяєєтii said...

tooo Touchy...! ek veer ki is se acchi shaadi nahi ho sakti...!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर, देशभक्ति का जज्बा जगाता गीत. कारगिल-शहीदों को नमन.

Unknown said...

Maa agar chahti shadi ho

desh bhakti se ot prto aapki kavita

kargil diwas par aapki ye kavita men mein josh bhar gayi

aap bahut ghare bahut adbhut kavi hai

उम्मीद said...

देशभक्ति के रस से परिपूर्ण रचना .....मान में कुर्बानी और वीरता का भावः जगाने में सफल हुई
आप की रचना पड़ कर आंख भर आई
इस रचना के भावः सीधे मन तक पहुच गए