Friday 21 May 2010

कभी हाँ कभी न तेरा ये बहाना बुरा लगता है ,,,,(प्रवीण पथिक,)

तेरा ये बनावटी सा मुस्कराना बुरा लगता है,,,
कभी हाँ कभी न तेरा ये बहाना बुरा लगता है ,,,,
कितनी तंगी खुशहाली साथ काटी थी हमने,,,,,
ये जिन्दगी यूँ अधर में छोड़ जाना बुरा लगता है ,,,
उम्र आंकते हुए खिची थी लकीरे जो दीवारों पर,,,
आज उन लकीरों को मिटाना बुरा लगता है ,,,
भुर भुरा कर गिर गयी चौखट पुराने घर की ,,,
बनावट के नाम पर घर गिराना बुरा लगता है,,,
आशूं छलक पड़ते है देख माँ की तस्वीर को,,,
अभी बच्चा ही तो हूँ यूँ छोड़ जाना बुरा लगता है ,,,
वो कैसे भूत शैतान कह कर बुलाया करती थी ,,,
अब किसी का नाम लेकर बुलाना बुरा लगता है,,,,
हर पल सुलगता हूँ उन पुराने दिन के अहसासों में,,
एक पल को भी अहसासों को भुलाना बुरा लगता है ,,,

10 comments:

M VERMA said...

वो कैसे भूत शैतान कह कर बुलाया करती थी ,,,
अब किसी का नाम लेकर बुलाना बुरा लगता है,,,,
वाकई उत्श्रृंखलताओं को जब कोई छोड़ता है तो अटपटा तो लगता ही है.
सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एहसासों को बखूबी लिखा है.

vandana gupta said...

हर पल सुलगता हूँ उन पुराने दिन के अहसासों में,,
एक पल को भी अहसासों को भुलाना बुरा लगता है ,,,

waah .........bahut khoob .

दिलीप said...

ehsaaason ko kya shabd diye waah...

kunwarji's said...

waah....
kunwar ji,

Udan Tashtari said...

उम्र आंकते हुए खिची थी लकीरे जो दीवारों पर,
आज उन लकीरों को मिटाना बुरा लगता है ,

-वाह!! बहुत बढ़िया...


बनावट और बनावटी कर लें बनाबट और बनाबटी को.

Unknown said...

मन के भावों को खूबसूरती से अभिव्यक्त करती सुन्दर गजल..........शुभकामनाएं।

Arvind Mishra said...

भुगते अहसास जीवन भर साथ रहते हैं -खट्टे भी मीठे भी !

अरुण चन्द्र रॉय said...

सुंदर रचना... इस कविता कि सबसे ससक्त पंक्तिया... भुर भुरा कर गिर गयी चौखट पुराने घर की ,,,
बनावट के नाम पर घर गिराना बुरा लगता है,,,

bhavnayen said...

parveen ek baar fir se aapne mujhe bhi unbachpan ki baaten yaad diladi aaj voh din yaad ate hain to aaj ki yeh viyast jindgi ke baare mein socho to such mein bura lagta hai suhane to wahi din hote hain bachpan ke