Tuesday 2 June 2009

म्रत्यु का आवाहन कर रहा हूँ ,,


म्रत्यु का आवाहन कर रहा हूँ ,,

निज से निज में उतर रहा हूँ ,,,

मौन है उद्देव्ग सारेहै दिशाए शून्य सी ,,

अस्पस्ट है कुछ धुंधली सी तस्वीर मेरे मन की ,,

शून्य से शून्य में चाहता विलुप्त होना ,,,

अंतरिक्ष के कोने में चाहता खोना ,,

चाहता हूँ इन तनो सर्व कालिक मुक्ति ,,

बनना चाहता हूँ मैं सर्जन की शक्ति ,,

अविरल अविराम मैं सर्जन चाहता हूँ ,,

पल पल नया नवीन संगीत चाहता हूँ ,,

कुछ दुदुम्भी बज रही है मेरे ह्रदय में ,,

मानो रण की रण भेरिया हो ,,,

होश और जोश से पल पल भर रहा हूँ ,,

आज अब शोक गीत का गान कर रहा हूँ ,,

म्रत्यु का आवाहन कर रहा हूँ ,,

उदिग्न सारे मिट रहे है तेज के ताप से ,,

मिट रही है दूरिया तेज के प्रताप से ,,,

रौशनी कही से कुछ कुछ दबी आ रही है ,,,

जिन्दगी पल पल सिमटती जा रही है ,,,

कही अजात से कोई मुझे बुला रहा है ,,,

कानो में कोई पल पल म्रत्यु गीत गा रहा है ,,

रौनके धुली धुली , खुला आशमा है ,,

जल के क्यों बुझ रही ये समां है ,,

सब सफ़ेद हो रहा है रंग छोड़ के ,,,

साथ था जो कभी, जा रहा है जीवन भी मुह मोड़ के ,,

हाथ मलता रहा पल पल विकल रहा ,,

अब तक संग जिन्दगी के मैं चलता रहा,,

अब ये तन तेरी शरण कर रहा है,,

अब मैं म्रत्यु का बरण कर रहा हूँ ,,,

म्रत्यु का आवाहन कर रहा हूँ ,,

1 comment:

guru said...

बहुत अच्छे प्रवीन जी... वस्तुत: जिस दिन हमारा जन्म होता है उसी छन हमारी मृत्यु का भी जन्म हो जाता है... सफर का अंत ध्येय पर ही होता है या यूं कहें कि ध्येय सदैव आखिर में ही पाया जाता है- और हम मृत्यु को आखिर में पाते हैं- सभी सिर्फ मृत्यु को ही तो समर्पित है- और घटने वाले हर छण को उससे मिलने के वक्त से कम करते हुए हम सभी उसी का आव्हान कर रहे हैं---

अपने प्रोफाइल से टाइप और व्याकरण की गलतियां हटाएं- खासकर स और श की... कम से कम प्रोफाइल बिना स्पैल मिस्टेक होना चाहिये-

खबरी
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