Monday 15 June 2009

आखिर क्यों चाहते हो समाज में बराबरी,,


क्यों विकल हो तुम ,,
आखिर क्यों चाहते हो समाज में बराबरी,,
क्यों नहीं आती है तुम्हे संतुष्टि ,,
मिल तो रही ही है ओला वर्षटि,,,
और क्या चाहिए तुम्हें ,,,
आखिर किसान ही तो हो ,,
तुम्हें साक्षरता और शिक्षासे क्या लेना .....
लोग चाँद पर जाये या मंगल पर ,,
तुम अपना हल चलाओ ,,,
और पैदा करो अन्न ,,,
हमारा पेट भरने के लिए ,,,
साथ में लगा लो ,,
अपने नादान बच्चो को हसिया और कुदाल दे कर ,,
और प्रसवा पत्नी को भी दुदमुहे बच्चे के साथ ,,
क्या फर्क पड़ता है ,,,
तुम भूखे सो ओ ,,
या तुम्हारे बच्चे दवा के आभाव में,,
विलख कर मरे ,,
और तुम्हारे पास पैसे न हो ,,,
आखिर देश तो प्रगति कर रहा है ,,
अब कर्ज में जान दे दो,,,
या रेलवे ट्रेक पर लेटो ,,,
या फिर गिरवी रख दो ..
अपनी बेटियों की अस्मिता ,,,
और बेटो की स्वतंत्रता ,,,
साहूकारों के घर में,,,
आखिर कर्म ही तो धर्म है तुमारा ,,,
ये क्यों कहते हो तुम्हें कुछ नहीं मिला ,,
मिला तो है ,,,
जय जवान जय किसान का नारा ,,,
रास्ट्र आय में भरी योगदान का सम्मान ..
और गरीबी भी तो मिली है ,,
अशिक्षा, बीमारी,भुखमरी ..
ये सब काफी कुछ तो मिला है ,,,
ये क्यूँ कहते हो शहर में मेट्रो है,,
गाँव में सडके नहीं है ,,अस्पताल नहीं है
स्कूल नहीं है ,,
आखिर उनके बिना रहने की तुम्हारी आदत तो है,,
क्यों कहते हो सरकार ने तुम्हें कुछ नहीं दिया ,,,
आखिर दिया तो है ,,,
अन्नदाता का सम्मान ,,
अन्नदाता कहलाने का अधिकार ,,,
भले ही तुम्हारी मौत भूख से हो ,,,
पर हो तो अन्नदाता
क्यों नहीं आती तुम्हें संतुष्टि

4 comments:

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

धरती पुत्र के प्रति राजनैतिक उदासीनता दिखाती रचना... खूब आग है साहब... जारी रहें...
खबरी
9953717705

Udan Tashtari said...

जबरदस्त कटाक्ष व्यवस्था पर. बहुत बढ़िया/

vijay kumar sappatti said...

praveen ji

This is it.. your true writing .. jabardasht bhai .. ek jwalant smasya ki vedna in shabdo me saaf jhalak rahi hai ... kisaan hamare desh ke sirf naam ke hi annadaata bane hue hai ..unke saath jo kuch anyaay ho raha hai wo sab aapki is kavita me jhalakta hai ..

waah ..aur aaah

bus badhai is shashkt rachna ke liye..

vijay

निर्मला कपिला said...

bahut hee katakshpooran abhivayakti haiaaj ki vyavastha par kisaan ki trasadi se gujar rahaa hai bakhoobi apne uski manodasha ko byan kiya hai aabhaar