Thursday 18 June 2009

क्यों सत्य को पखार दूँ ?/(कविता)


महज मान के लिए ,,,,
क्षणिक मान के लिए ,,,
क्यों सत्य को पखार दूँ ?/
प्रेम वासना के लिए,,
चालित रसना के लिए ,,
दिव्य क्यों निकार दूँ ?/
जन्म जन्मान्त से दवी,,
सुप्त इच्छाओ को ,,
जाग्रत कर क्यों पाप लूँ?/
सत्य को क्यों पखार दूँ ? /
इस भंगुर जिस्म की चाहता ,,,
इस सुख तिलिस्म की चाहता ,,
यह स्वर्ण लेपित लहू पर्त है,,
पाताल व्यापी गहन गर्त है ,,
क्यूँ जान कर मैं विहार करूँ ??
सत्य को क्यों पखार दूँ ??
दुखितो का लहू पान कर ,,
धनिकों को धन दान कर ,,
अपूज्य को पूज्य मान कर ,,
सुधा वाट में विष पान कर ..
क्यूँ अखाद आहार करू ??
क्यों सत्य को पखार दूँ ?/
क्यों अनित्य को नित्य मान लूँ ?
क्यों भेद को अभेद मान लूँ ?
क्यूँ सुख में दुःख उर डाल लूँ ?
क्यों सुक्ष्म को गहन मान लूँ ?
क्यों अब आत्म तत्व का संघार करूँ ?
क्यों सत्य को पखार दूँ ?
क्यों दिव्य को निकार दूँ ?

8 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

"क्यों सत्य को पखार दूँ ?..
पूरी की पूरी रचना बहुत पसंद आयी ,बहुत सुंदर ,धन्यवाद .

निर्मला कपिला said...

bबहुत सुन्दर कविता एक अध्यात्मिक और राष्ट्र्प्रेमी दिल से उपजी कविता के लिये धन्यवाद्

Vinay said...

कविता बहुत सुन्दर और प्रकाशमयी है

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रंजना said...

Satvik chintan.....Sundar rachna.....

vijay kumar sappatti said...

praveen ji

sabse pahle is racvhna ke liye mera sallam kabul karen.. itni sundar aur pyaari hindi ....main to mugdh ho gaya hoon bhai ....aapki is rachna ne mujhe itni adhaytmik aur prem ki bahuaayami rachna ko aapne itne sundar shbado se alankrit kiya hai ki ..kya kahun ... main nishabd hoon aapke lekhan par ..mera naman sweekar karen..

this is most ultimate and best wiritng of you ..

mera to din khoobsurat ho gaya bhai ...

badhai sweekar karen..

aapka
vijay

sandhyagupta said...

Is arthpurn kavita ke liye badhai swikar karen.

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

एक हमेशा प्रसन्न रहने वाले प्रवीण पथिक को प्रणाम... सांचे की खोज में कबीर की कड़ी को पकड़ती रचना... लगातार अच्छा लिख रहे हैं आप... शुभकामनाएं... अब तो मिलना ही पड़ेगा...
खबरी
http://deveshkhabri.blogspot.com/

संगीता पुरी said...

"क्यों सत्य को पखार दूँ ?..
बिल्‍कुल सही सोंच .. सुंदर अभिव्‍यक्ति।