ओं सौर रश्मियो के पार ,
हे दया के आगारअंतस वेदना के हर्ता।
सत्य चेतना के कर्ता।
जुगनुओ की चमक ...
तारो की दमक ...
अन्धरो के सूत्र पात,,,
स्रजन के लिए विख्यात ,
दूर कर दो ,,,,,,,,,,
असह दुखो के बादल ।
पथ सुगम कर दो,,,,,,,
पथ प्रदर्शक बन साथ चला
रचा दो रंगीन बाना ,,,
सिखा दो नवगीत गाना
जिससे ,,,,,
प्रपंच सरे छोड़ कर ,
तुझ से रिश्ता जोड़कर ।
अगम्य सुख कापान कर लूँ
अमोघ तेराज्ञान कर लूँ ,
विचार सारी विचारकता में,
घूम सारी चराचरता में,
मैं दिव्य घोष कर दूँ ,,
तेज उदघोष कर दूँ ,,,
की तू जगत का सार है,
लिप्तता में निर्लिप्तशून्य के पार है
अब मिट जाने दो ,
अब झुक जाने दो......
ओं वैरागियो के हार ॥
ओं सूर्य रश्मियों के पार ………,
हे दया के आगार ,,,,,
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