Thursday, 23 April 2009

उठ पथिक मंजिल को अपनी तू निहार ,


उठ पथिक मंजिल को अपनी तू निहार ,

जाना है दूर तुझ को मत कर विहार ,,

कठिनाई तेरे हौसले है और हिम्मत भी

प्रेम तेरा मार्ग दर्शक और दौलत भी ......

धरती कुटुम में घूम बनके मधुप ,,,,,,,,

चूम ले सारी नवीनता बनके रसिक ,,,,

उठ पथिक उठ पथिक उठ पथिक ,,,

बन विरत बन विरत बन विरत ...

ज्ञान तेरी आरजू चाहत भी है वही,,,

ना वैराग का डर हो चाहत भी हो नहीं ,,,,,,

जाग इस धरा में चढ़ उचाई रवि सम ,,,

विचलित न हो अरी आंधिया हो चाहे विषम ,,,

मनुष्य से मनुष्य को तू मिला दे ..........

फांसले उनके बड़े उनको मिटा दे ,,,,

बन जनक बन जनक बन जनक,,

उठ पथिक उठ पथिक उठ पथिक ,,,,,

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