धूप से जो बर्षा था यौवन ,,,
खिल उठा धरती का मन ,,,
घाश की नोकों से हंसती ,,,
चुलबुली झोको से हंसती ,,,,,
प्यार ले ले के बरसती ,,,,
प्यार दे दे के बरसती,,,,
वो चंचली बाला ,,,,,,
हर अंग था उसका पुलकित ,,,,
हर ढंग था उसका हर्षित ,,,,
यौवन के दहलीज पे ,,,
रखती कदम वो चल रही थी ,,,,
हर मोड़ पर गिरती फिर ,,,,
गिर कर सभल रही थी ,,,,,
सौन्दर्य उसका गिर रहा था ,,,
वस्त्र की सिलवटो से ,,,
उठ रही थी मंद गंधे ,,,,,
जुल्फ की लटो से ,,,,,
विचारशील सी वो ,,,,,,
मुग्ध चल रही थी ,,,
हर घडी घमंड से ,,,
उछल रही थी ,,,,,
साँस उसकी तेज थी ,,
और हौसले बढे हुए ,,,,
कर रहे थे स्वागत ,,,
लोग सब खड़े हुए ,,,
वो मुस्करा रही थी ,,
गा रही थी ,,,
गीत ही गाये जा रही थी,,,
कुछ चमक थी कुछ दमक थी ,,,
पहन रखा था जी उसने वसन ,,,
धूप से जो वर्षा था यौवन ,,,,,
खिल उठा धरती का मन ....
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