देखो बो भारत का भाग्य खेलता है
कंधो पर है भारी बोझा
धूसित तन मिटटी के रंग का,
गायो के संग खुद चरता जाता ,
ता ता थैया करता जाता
पाबो मैं काँटों की किले चुभती।
सूरज तपता समता खोकर के,,
अपनी मस्ती में मस्ती लेताबढ़ता जाता, बढ़ता जाता
लेता न कही बिश्राम पथिक बो,,,
मानो सब पूरित करने की ठानी हो,,
आँखों से आंसू निर्झर बहते,,
पेटो की पसली चमक रही है ,,,,
मानो सागर खुद मोती उड्लाता,
इस कल के भारत के ऊपर,,
करना चाहता सर्वस्व निछाबर,,
इस मीठे बालक के ऊपर,,
खाने को क्या मिलती रोटी,,
ये मैदानों का बिस्तर सादा,,,
क्या सच में भारत का भाग्य यही है,,,
नहीं नहीं दुर्भाग्य यही है,,,
नित नित उसका खोता जायेगा
फिर एक एक बालक सोता जायेगा
कुछ शेष नहीं अबशेष रहेगा...
इस मौन कुटीर मैं धाम बनेगा....
उस बालक की छाती के ऊपर
राष्ट्र गान का बोल बोलता है,,,,,
देखो बो भारत का भाग्य खेलता है,,,
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