इस सम्मोहन की घड़ी में ,,,
वैचारिक क्रांति के साथ ,,,
निर्भीकता से उदिग्न होती ,,,,
भावनाओं को पीछे छोड़ता हुआ,,,
आंतरिक उर्जा व स्पस्टता को समेट कर....
मैं गमन कर रहा हूँ ,,,
इन श्रंखलित होती भावनाओं से निकल रहा हूँ ,,,,
पता नहीं मिलेगी अथाह गहराई ,,,,
या समुचित विकिशित सभ्यता ,,,,
हर कदम पे पड़ेगे थपेडे ,,,
पार करने होंगे पथ टेड़े,,,,
फिर गौरवान्वित हो कर मैं कह सकूँगा ,,,
असीम की प्राप्तता को ,,,,,,
फिर हर्षित हो कर मैं सह सकूँगा ,,,,
कष्ट की व्याप्तता को .....
ये विशुद्ध वैराग ही सही,,,,,,
ये दुर्वुध राग ही सही ,,,,,
या हो चाहता अप्राप्त की ,,,,
मौन ही सही बढता रहूँगा ,,,,
धीमे ही सही चड़ता रहूँगा ,,,,
पार कर लूँगा कठ्नायिया,,,,
हौसलों के रथ से ,,,,,,
पाट दूंगा खायिया ,,,,,
जज्बात की परत से ....
मिटा दूंगा भेद लौकिक व पारलौकिक का ....
कर लूँगा दर्शन ,,,,
शून्य से अलौकिक का ,,,,
इन उठ रही ज्वलंत लहरों को ,,,
मैं नमन कर रहा हूँ ,,,,,,
मैं गमन कर रहा हूँ,,,,,,,,,,,
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