आज हमें सभ्यता की पहिचान हो गयी है ,,,
क्यों की हमारी अपनी पहिचान खो गयी है ,,,
हम सीख गए है रहने का सलीका ,,,,
खाने पीने का तरीका ,,,,,
आ गयी है हम को उत्तम संस्क्रती ,,,
की है हमने लम्बी प्रगति ,,,,
हम अपना पेट कितनी सफाई से भरते है ,,,,
तुम्हारा भोजन कितनी वेवफाई से हड़पते है,,,
क्यों की हमारी मानवीयता सो गयी है ,,
आज हमें सभ्यता की पहिचान हो गयी है ,,,
क्यों की हमारी अपनी पहिचान खो गयी है ,,, .....
नहीं आती है हम को दया ,,,
,नहीं आती है हम को हया ....
जब भूंख से कोई रोता है ,,,,,
जब कोई बचपन खोता है ,,,,,
कान बंद कर के निकल जाते है हम ...
क्यों की जिन्दगी आसान हो गयी है,,
आज हमें सभ्यता की पहिचान हो गयी है ,,,
क्यों की हमारी अपनी पहिचान खो गयी है ,,, ....
सीख लिया है हम ने हर द्वंद में लड़ना ,,,
सीख लिया है हम ने आत्म प्रगति में बढ़ना ,,,,
तुम को दवा कर ही बड़े तो क्या ,,,,
तुम को गिरा कर ही बड़े तो क्या,,,
आज हमारी शान तो हो गयी है ,,,,
क्यों की हमारी अपनी पहिचान खो गयी है ,,,.....
हर वक्त वे वक्त हम अपने आप को देते है गाली ,,,
लगती है अपनी पहिचान हमें काली ,,,
खुद की खुदी हमें वेदर्द लगती है ,,,,,
अपनी जिन्दगी हमें सर्द लगती है ,,,,,
क्यों की हम में ये वक्त रम गया है,,,
जिन्दगी हमारी वियावान हो गयी है ,,,,
आज हमें सभ्यता की पहिचान हो गयी है ,,,
क्यों की हमारी अपनी पहिचान खो गयी है ,,,
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