कल रात कर्म से मेरी सीधी भेट हो गयी ,,,,
लाख बढाये फांसले , पर चपेट हो गयी ,,,
वो मस्ती में बड़बडाये जा रहा था,,,
मैं भोझ से दवा ताड़पडाये जा रहा था ,,,
बोला समंदर की गहराई में उच्छ्लता हूँ मैं ,,,
मुश्किलों में बढती प्रबलता हूँ मैं,,,,
हर दीर्घ साँस के लिए रुकी सोच हूँ ,,,
विशिस्ट हूँ और जीवन की लोच हूँ ,,,,
मौसम् के रंग में रंगीन अहसास हूँ ,,,,
हर दिल में प्रस्फुटित विस्वाश हूँ,,,,
मैं राग हूँ वैराग हूँ लालसा की देन हूँ ,,,,
स्वांस हूँ प्र्स्वांस हूँ विरक्त ब्रेन हूँ ,,,,
हूँ सुप्त कुमुदनी सा प्रस्फुटित फेन हूँ ,,,
कराल हूँ मैं ,,,
मैं आग की देन हूँ....
कालिमा में लालिमा का मैं निखार हूँ ,,,
हूँ क्रोध की जलन ,,,,,मैं प्यार हूँ ......
क्षोभ हूँ ,, लोभ हूँ ,,हूँ मोह की घनिष्टता ...
रत हूँ विरत हूँ प्रेम की ध्रष्टता ,,,,
हार में भी जीत का संवाद हूँ ,,,,
यूद्ध में मैं शंख नाद हूँ ,,,,,
इस तमिष जगत में मैं ही धीर हूँ,,,
इस कायर परत में मैं ही वीर हूँ ,,,,
हर स्वांस मेरी यूद्ध घोष है ,,,,,
हर लव्ज में मेरे खूब रोष है ,,,
जोश हूँ रोष हूँ और हौशला भी हूँ ,,,,
कृत्य हूँ कर्ताहूँ और और फैशला भी हूँ ,,,
इस अंधड़ की आग में मैं फिर रहा हूँ घूमता ...
इस काँटों के बाग़ में मैं फिर रहा हूँ ढूडता ,,,,
महिमा हमारी जो खो गयी ,,,,,
कल रात कर्म से मेरी सीधी भेट हो गयी ,,,,
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