तेरी उपमा किससे कर दू,,,
किससे दूँ तेरा सम्मान ,,,
मेरा जीवन भी तो तेरा है ,,,
फिर दूँ क्या तेरे को तेरे से मान ...
माँ तू अमित संगिनी मेरी ,,,
हर सांसो प्र्स्वासो में,तेरा भान ,,,,
जब कभी विकल व्याधि सी" माँ ,,
मुझको पीडा बहुत सताती है,,,
जब कभी तीव्र उलझनों से,,,
दुनिया मेरी रुक जाती है ,,,
हर घडी पास तुझको मैंने पाया है ,,,,
जब कड़ी धूप में आता बादल ,,,,
लगता तेरे आंचल का साया है ,,,
इन दूर दूर गामी देशो में रह कर ,,
इन विविध विविध वेशो में रह कर ,,,
माँ मैं कभी नहीं तुझको भुला हूँ ,,,,
इस जीवन के नितान्त अकेले पन में माँ ,,
तुने ही तो साथ निभाया है ,,,
सुख में तू किलकारी बन गूंजी ,,,
दुःख में बनी वेदना ,,,, माँ :::::::
मौन रहूँ तो उसमे भी तू ,,,,,
विचारो की अनवरत श्रंखला है,,,,
तेरा साया पल पल मैंने महसूस किया है ...
तेरी स्म्रतियों के झोको ने भी तो ,,,
नवजीवन ही दिया है ,,,
मैं बौना बन यही सोचता,,,
तेरी गरिमा किससे कर दूँ ...
किससे दूँ तुझको मैं मान ,,,
तेरी उपमा किससे कर दूँ ,,,
किससे दूँ तेरा सम्मान ,,,,,
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