बड़ी लुभावन ....
है मनभावन ॥
जह फागुन वयार,,,,,,,
जान निज प्रिय आगमन …
कर नभ मुकुर श्रंगार ,,,,
चल चपला सा चितवन ,,,,
लाखे सुरपुर माधुरी ,,,,,,,
उमंडी घुमंडी येचती नव वधु सी ,,,
रम्य मूरत सुंदरी की ,,,,,
तेहि छवि जाल देखत मन वहो ,,,
लेखी उमंग निज सर छहों ,,,
रज छटक छटक गिरती ,,
मनो नुपुर कनक के,,,,
रगड़ झर झर करती …॥
मनो कर प्रेमिका के ,,,
रूपसी ने निज प्रिय के लिए ,,
सब पुष्प पुष्पित कर दिए,,,
नव गंध सुगंध भरके ,,,
पुष्प निज कर भर लिए ,,,
प्रिय आगमन ते है पसीना पसीना,,
व्याकुल निज प्रिय वसंत के लिए,,
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