कुटिलता क्यों निहरता है ???
क्योँ इसी में विहरता है ???
मान के सुख क्यों इसी मेंडूबता उछरता है????
भान कर शक्ति का ……
मान कर शक्ति का ,,,,,
शक्ति जीवन जीवन आधार है ,,,
शक्ति मय संसार है ,,,,,
शक्ति का अवधान कर ,,,
मत विकल हो व्यवधान कर …
मत भैभीत हो …॥
शक्ति से क्यों सिहरता है ??
कुटिलता क्यों निहरता है??
ब्रह्म मय तू ,जग ब्रह्म मय जान.
ब्रह्म से ब्रह्म को विमुख ना मान …
ब्रह्म में जो सरसता है ॥
उसमे शक्ति ही बरसता है ,,,
शक्ति जग का हार है …
पर क्र्पान की धार है ,,,,
गर हो गया विमुख …
कुछ रहेगा ना समुख ,,,
शक्ति मय बन जा,,,
शक्ति का अवसान क्यों करता है??
कुटिलता क्यों निहरता है ??
निकलती स्वर्ग की राह इससे,,,
निकलती विकाश की बांह इससे,,
स्रस्ति सारी इसपे ही टिकी है ,,,
कब किसी के तूरिन से यह डिगी है?/
व्याल के गरल से तिक्ष्न है /
यूद्ध के द्वंद सी भीषण //है
जंग बिन लड़े ही क्यों बिखरता है???
कुटिलता क्यों निहरता है ????/,,,,,,,,,,
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