Wednesday 22 April 2009

चाह थी जिसकी बो मिल ना सकी .


चाह थी जिसकी बो मिल ना सकी .
अनचहे से मिलन का क्या फायदा ,
चाहते इन्तहा मेरा ,दिल के इन्तहा
से क्या फायदा .
चाह थी जिसकी बो मिल ना सकी .
अनचहे से मिलन का क्या फायदा ,
दर्द दे के भी खुशिया मिले तुमको यारा,
दुआ दे ये तडपता दिल हमारा.
दवा दे के जख्म देने का क्या कायदा ,
चाह थी जिसकी बो मिल ना सकी .
अनचहे से मिलन का क्या फायदा ,
गम ले ले के हम गमगीन हों ,
पर तेरी हर शाम रंगीन हों .
हम तो जले ही , जले को जलने से क्या फायदा
चाह थी जिसकी बो मिल ना सकी .
अनचहे से मिलन का क्या फायदा ,
फूल भी हम को चुभन दे ,जलाये हमे.
हवा भी हम को सलन दे व सलाये हमे
दुआए तुमको लगे वा हमको बददुआ .
चाह थी जिसकी बो मिल ना सकी .
अनचहे से मिलन का क्या फायदा ,
जाने हमको सबेरा की चाहत नहीं ,
हम तो अंधड़ में दुनिया मिटा देंगे .
फिर तनिक सी रौशनी का क्या कायदा
चाह थी जिसकी बो मिल ना सकी .
अनचहे से मिलन का क्या फायदा ,

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