Wednesday 22 April 2009

वाशी ओ तुझको वसाया अपने दिल में .,,,


वाशी ओ तुझको वसाया अपने दिल में ।,,


राते गिन गिन के काटी दिन गिन गिन के,,,


सांसो में तू ही तू धड़कने तेरी रही,,,


कसम से कसम में भी तू रही ,,,,


जिस्म में तू रही जज्बात भी तेरे रहे ,


मेरा था ऐसा क्या तू ना जिसमे ,।


वाशी ओ तुझको वसाया अपने दिल में ।


राते गिन गिन के काटी दिन गिन गिन के,,,


चाह में तू ही थी चाहत वा चाहवी,


प्रेम तू प्रेमी तू ,तू ही प्रेमिका भी…।


रीझ खीझ मान मन तू ही मनुहार भी,,,


मेरे में तू तेरे बिन मैं किस में ,,,


वाशी ओ तुझको वसाया अपने दिल में ।


राते गिन गिन के काटी दिन गिन गिन के,,


रंग रूप में तू रूप योवना ।


किस किस में रखु , तुझ से ही तो मैं बना,,


दंभ क्रोध चाल हुस्न तुझमे ही ।


पल पल तू ॥ तू है न किसमे,,,,


वाशी ओ तुझको वसाया अपने दिल में ।


राते गिन गिन के काटी दिन गिन गिन के


हार जित खेद दुःख,,,,,,,,,,,


धर्म कर्म नीत सुख .....


प्रश्न मंत्र यज्ञ अग्नि,,,,,


तू ही आहवी,,,,,,


शुन्य जिस्म मेरा वो तू न जिसमे ………


वाशी ओ तुझको वसाया अपने दिल में ।


राते गिन गिन के काटी दिन गिन गिन के,,,,







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