Tuesday 21 April 2009

म्रत्यु तो नव जीवन का प्रसार है :::::::;;


वेद और वेदांत का भाष ...

राग में वैराग का आभास ,

तुम्ही दे सकते हो

व्यथित मन थकित तन को ,

चिर विकाश कर थकान

तुमही हर सकते हो

क्या शुभ क्या अशुभ ,

तुम कण वासता हो ।

फिर क्यों दिग्भर्मित मैं ??

उखाड दो न इस दासता को ,

जग मय आप आप मय जग

भेद विभेद क्षण भंगुर है ,

फिर क्यों इस भेदता का,,

प्रखर ज्ञान होता?/

क्यों? जान कर भी स्वाभिमान सोता ॥

क्यों कुंद है ??,,,,,,,,,

सब ज्ञान की नाले …।

क्यों सुप्त है ??,,,,,,,,,,,

सब सत्य की डाले ……

अमरत्व कहाँ सोता है ???

क्यों मृत्यु से रोता है ??

ये नवीनता है नव संचार है

नए युग का प्रसार है

दुःख क्या इस में ???

जीर्ण से जीर्ण नव्य होंगे

म्रत्यु तो नव जीवन का प्रसार



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