Wednesday 22 April 2009

जुदा ही करना था तो वफ़ा क्यों की ,,,,,


जुदा ही करना था तो वफ़ा क्यों की
सजा ही देनी थी तो खता क्यों की
गवारा ना होती तेरी ये जुदाई .
सही ना जाये तेरी ये वेवफाई
दिल चट्कता है रोता ये मन ,
शमा से तो शुलगता ही है तन .
नशा ही करना था तो दवा क्यों दी ,
जुदा ही करना था तो वफ़ा क्यों की
सजा ही देनी थी तो खता क्यों की

कंहा तक तेरी मैं यादे मीटाऊ
तुझे दूर करके किसे मैं लगाऊ
कशक दिल में उठती , मन में चुभन सी
ख़ुशी तू दुखी मैं , होती जलन सी
मन ही करना था तो हाँ क्यों की
जुदा ही करना था तो वफ़ा क्यों की
सजा ही देनी थी तो खता क्यों की

पास आने की दावत दे फासला बढाया
गिरना ही था तो क्यों ऊपर चडाया
कम या ज्यादा थोडी सी तो पी है ,
करी थी मोहब्बत , तू वो नहीं है
रुला ही देना था तो ये अदा क्यों की
जुदा ही करना था तो वफ़ा क्यों की
सजा ही देनी थी तो खता क्यों की

पलक में मिटाए अरमा मेरे सब
दिल में जो था वो मिटा , पता न कब
दुल्हन बनाने की उम्मीदे टूटी
नाज था जिसपे किस्मत वो फूटी,
मजा न देना था तो सजा क्यों दी
जुदा ही करना था तो वफ़ा क्यों की
सजा ही देनी थी तो खता क्यों की

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