Friday 24 April 2009

दिल में घुसने लगा जहर सा ,,,


दिल में घुसने लगा जहर सा ,,,

आंख आंशू भर रहे है,,,,

बंद थे जो जख्म दिल में ,,,,

आज वो उभर रहे है ,,,,,

तनहा तनहा जी रहे थे ,,,

बांध कर सारा समंदर ,,,,

चुपके से आंशू पी रहे थे ,,,,

बांध ली थी अपनी दुनिया ,,,

इन वीराने जंगलो में ,,,,

पर ना जाने क्यों यहाँ ....

बसने लगा शहर सा ,,,,

दिल में घुसने लगा जहर सा ,,,,,,,

हर याद को तेरी हमने भुला दिया था ,,,

हर जख्म में तुझको हमने मिला लिया था ,,,

हर घुटन में मय के ,,

तू ही तू तो चल रही थी ,,,

दिल की धडकनों में तू ही उछल रही थी ,,,,

खामोश था मैं और सांस जल रही थी ,,,,

हर घड़ी नब्ज छूटने को मचल रही थी ,,,

लग रहा था जैसे चलने लगा कोई कहर सा ,,,,

दिल में घुसने लगा जहर सा ,,,

मुश्किलों से सांस की डोर को पकडे हुए ,,,,

मुठ्ठियों में भींच कर जख्म को जकडे हुए ,,,,

हर शून्य शाम में तेरी राह तक रहा हूँ ...

।तेरी एक झलक को मैं दर दर भटक रहा हूँ ,,,

मौन बादलो से भी मैंने एक ही सुना है राग ,,,

देखो वो जलने लगा है कोई बेसबर सा ,,,,

दिल में घुसने लगा जहर सा ,,,


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