Thursday 23 April 2009

हूँ प्राणी नीचे सागर का उच्छ्लता की चाह मुझे ,


हूँ प्राणी नीचे सागर का उच्छ्लता की चाह मुझे ,

कठिनाई आये या जाये उसकी ना परवाह मुझे ,,

रूढी मानवता में मैं नवता का संचार करू...

नवीनता ही जीवन है उसका ही ध्यान धरु ....

चढू उचाई इस कम्पित जीवन की ,,,,,

दुःख की गहरी नदियों को भी मैं पार करू ॥

पीछे मुड के मैं न देखूं , भाये आगे की राह मुझे ,,,,

हूँ प्राणी नीचे सागर का उच्छ्लता की चाह मुझे ,,,

कंटक दुश्मन बो दे या भर दे घावो की नदियाँ ,,,

प्रेमी बनके उनकी इस कटुता का त्याग करू ,,,,

पर्वत आये नदिया आये या सागर ले हिलोरे ,,,

जीवन पथ पर बढ़ता जाऊं कदम रुके ना मेरे ,,,,,

अपने ही दुश्मन बन जाए इसकी ना परवाह मुझे ,,,,

हूँ प्राणी नीचे सागर का उच्छ्लता की चाह मुझे

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