Monday 27 April 2009

माँ याद मुझे फिर आती है ,,


माँ तेरे हांथो की रोटी ,
याद मुझे फिर आती है ,,
इन यादो की छावो में,
आँख मेरी भर जाती है ,,,
माँ जब मैं छोटा था ,,,
ऊँगली पकड़ चलाती थी ,,,
नंगे नंगे ही भाई के संग ,,,
नल पे मुझे नहलाती थी ,,,
जब फूटा था मेरा अंगूठा ,,,
दो दिन तक छत पर न सोई ,,,
चूहे ने काटा था जब माँ मुझको ...
मेरे से ज्यादा तू थी रोई ,,,,
खूब याद है मुझको माँ,,
चौके में काली लकीरे करना ,,
जीने पर चढना फिर गिरना ,,,
पर कभी नहीं दुत्कारा तुमने ,,
कभी नहीं था मारा तुमने ,,,
अंधियारे से बचने का तब ,,,
मुझमे कहाँ पे बल था ,,,
झट छुप जाता आंचल में,,,
बस उसका ही तो संबल था ,,,
माँ खूब याद है ,,,
कंडो के ऊपर चौकडी भरना,,,
फिर उनके टुकड़े टुकड़े करना ,,,,
अपनी मेहनत का ये हाल देख कर,,,
गुस्से में वो तिरछी काली आँखे ,,,
याद मुझे फिर आती है ,,,,,
माँ तेरे हांथो की रोटी ,
याद मुझे फिर आती है ,,
इन यादो की छावो में,
आँख मेरी भर जाती है ,,,

No comments: