Wednesday 22 April 2009

बंदिशो में न रहती मोहब्बत ,




बंदिशो में न रहती मोहब्बत ,


उसे तो खुला आशियाना चाहिए ,


प्रेम की कशिश भी क्या कशिश हैप्रिये ,,,


हम तो तनहा जिए व तनहा मरे ।


तान्हाइयो से हुई है मोहब्बत,,,


तन्हाईयो का ही दरमियाना चाहिए ।


बंदिशो में न रहती मोहब्बत ,


उसे तो खुला आशियाना चाहिए,,


खुदा गवाह इसमें कत्ले आम होते ,


बिछुड़ते कितने कितने रोते ।


कालिख से पुते दिन मौत सी ये राते,


पर हमें प्रेम का दिया ना चाहिए ,


बंदिशो में न रहती मोहब्बत ,


उसे तो खुला आशियाना चाहिए,


गली की कलि फूल बन के इतराई,


हालत पे उसके हमको तरश आयी,


न गली के गीत , न चमन के संगीत,


हमें तो पुराना रागियाना चाहिए ।


बंदिशो में न रहती मोहब्बत ,


उसे तो खुला आशियाना चाहिए,


प्रेम की परी भी थी तनहा मरी ,


क्यों करी थी मोहब्बत , क्यों मोहब्बत करी


है मिलन की न चाहत ,,


अबतनहाइयो का ही दर्मियाना चाहिए ,


बंदिशो में न रहती मोहब्बत ,


उसे तो खुला आशियाना चाहिए...








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